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कुरआन की आयत 3:193 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

رَبَّنَا إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا يُنَادِي لِلْإِيمَانِ أَنْ آمِنُوا بِرَبِّكُمْ فَآمَنَّا ۚ رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الْأَبْرَارِ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • رَبَّنَا : हे हमारे पालनहार

  • إِنَّنَا سَمِعْنَا : निश्चय ही हमने सुना

  • مُنَادِيًا : एक पुकारने वाले को

  • يُنَادِي : पुकार रहा है

  • لِلْإِيمَانِ : ईमान की ओर

  • أَنْ آمِنُوا بِرَبِّكُمْ : कि ईमान लाओ अपने रब पर

  • فَآمَنَّا : तो हम ईमान ले आए

  • ۚ رَبَّنَا : हे हमारे पालनहार

  • فَاغْفِرْ لَنَا : तो हमें माफ कर दे

  • ذُنُوبَنَا : हमारे गुनाह

  • وَكَفِّرْ عَنَّا : और मिटा दे हमसे

  • سَيِّئَاتِنَا : हमारी बुराइयाँ

  • وَتَوَفَّنَا : और हमें मौत दे

  • مَعَ الْأَبْرَارِ : नेक लोगों के साथ

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"हे हमारे पालनहार! निश्चय ही हमने एक पुकारने वाले को ईमान की ओर पुकारते सुना कि 'ईमान लाओ अपने रब पर' तो हम ईमान ले आए। हे हमारे पालनहार! तो हमें हमारे गुनाह माफ कर दे और हमसे हमारी बुराइयाँ मिटा दे और हमें नेक लोगों के साथ मौत दे।"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उन नए मुसलमानों की दुआ का वर्णन करती है जिन्होंने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दावत सुनकर इस्लाम कबूल किया था। यह दुआ उनकी ईमानदारी और लगन को दर्शाती है कि वे न सिर्फ ईमान लाए बल्कि अल्लाह से अपनी माफ़ी और नेक मौत की दुआ भी मांग रहे हैं।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:

  1. दावत का महत्व: ईमान की दावत सुनना और उसे स्वीकार करना

  2. तौबा और माफ़ी: ईमान लाने के बाद गुनाहों की माफ़ी मांगना

  3. अच्छी मौत की दुआ: नेक लोगों के साथ मौत की दुआ मांगना

  4. विनम्रता: अल्लाह के सामने विनम्रता से दुआ मांगना


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता :

आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • नए मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन: आज जो लोग इस्लाम कबूल कर रहे हैं, उनके लिए यह आयत एक बेहतरीन दुआ है जो वे अपने लिए मांग सकते हैं।

  • दावत-ए-इस्लाम का काम: यह आयत दावत-ए-इस्लाम के काम में लगे लोगों को प्रेरणा देती है कि वे लोगों को ईमान की तरफ बुलाएं।

  • आध्यात्मिक शुद्धता: हर मुसलमान के लिए यह जरूरी है कि वह अपने गुनाहों की माफ़ी मांगे और अच्छी मौत की दुआ करे।

  • युवाओं के लिए प्रेरणा: आज के युवाओं को यह आयत सिखाती है कि ईमान लाने के बाद भी लगातार अल्लाह से माफ़ी मांगते रहना चाहिए।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "ईमान लाने के बाद अल्लाह से माफ़ी मांगना और नेक मौत की दुआ मांगना हर मुसलमान का कर्तव्य है।" भविष्य में चाहे दुनिया कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:193 उन लोगों की दुआ का वर्णन करती है जिन्होंने ईमान की दावत सुनकर इस्लाम कबूल किया। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि ईमान लाने के बाद हमें अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगनी चाहिए, अपनी बुराइयों को मिटवाना चाहिए और नेक लोगों के साथ मौत की दुआ मांगनी चाहिए। यह आयत आज के युग में हमारे लिए एक संपूर्ण दुआ का नमूना है जिसे हर मुसलमान को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।