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क़ुरआन 3:31 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 31)

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ

2. सरल हिंदी अर्थ

"(हे पैगंबर!) आप कह दीजिए: 'यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, अल्लाह तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा।' और अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।"

3. शब्दार्थ (Word Meanings)

  • قُلْ (कुल): (आप) कह दीजिए।

  • إِن (इन): यदि।

  • كُنتُمْ (कुंतुम): तुम हो।

  • تُحِبُّونَ (तुहिब्बून): प्रेम करते हो।

  • اللَّهَ (अल्लाह): अल्लाह से।

  • فَاتَّبِعُونِي (फत्तबिऊनी): तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो।

  • يُحْبِبْكُمُ (युहबिबकुम): वह (अल्लाह) तुमसे प्रेम करेगा।

  • اللَّهُ (अल्लाह): अल्लाह।

  • وَيَغْفِرْ (व यग्फ़िर): और क्षमा कर देगा।

  • لَكُمْ (लकुम): तुम्हारे।

  • ذُنُوبَكُمْ (ज़ुनूबकुम): तुम्हारे पाप/गुनाह।

  • وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।

  • غَفُورٌ (ग़फूरुन): अत्यंत क्षमाशील।

  • رَّحِيمٌ (रहीमुन): अत्यंत दयावान।

4. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation)

यह आयत इस्लामी शिक्षा का एक मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है। यह केवल एक आदेश नहीं है, बल्कि प्रेम और आज्ञाकारिता के बीच के अटूट रिश्ते को दर्शाती है। यह आयत एक तार्किक और आध्यात्मिक फॉर्मूला प्रस्तुत करती है।

1. प्रेम की शर्त: "कुल इन कुंतुम तुहिब्बूनल्लाह" (कह दीजिए, यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो)

  • यह वाक्य एक चुनौती और एक स्व-मूल्यांकन का निमंत्रण है। अल्लाह लोगों से उनके दावे की सच्चाई जांचने के लिए कह रहा है।

  • यह इस बात को रेखांकित करता है कि ईश्वर के लिए केवल भावनात्मक प्रेम या दावा ही पर्याप्त नहीं है। सच्चा प्रेम कर्मों में दिखाई देता है।

2. प्रेम का प्रमाण: "फत्तबिऊनी" (तो मेरी पैरवी करो)

  • यह आयत का केंद्रीय सिद्धांत है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पैरवी (अनुसरण) करना, अल्लाह के प्रेम का एकमात्र सत्य प्रमाण है।

  • "अनुसरण" का अर्थ है:

    • आस्था में: उनके लाए हुए संदेश (क़ुरआन) और तौहीद के सिद्धांत पर विश्वास करना।

    • आचरण में: उनके व्यवहार, शिक्षाओं और आदर्श (सुन्नत) का अनुकरण करना।

    • आज्ञापालन में: अल्लाह के आदेशों और निषेधों का पालन करना जैसा कि पैगंबर ने समझाया।

3. प्रेम का पुरस्कार: "युहबिबकुमुल्लाहु व यग्फ़िर लकुम ज़ुनूबकुम" (अल्लाह तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा)

  • यह वादा है कि यदि आप प्रेम का सही प्रमाण देंगे, तो आपको दो अद्भुत पुरस्कार मिलेंगे:

    • अल्लाह का प्रेम: यह सर्वोच्च उपलब्धि है। ईश्वर का प्रेम शांति, मार्गदर्शन और दुनिया व आखिरत में सफलता की चाबी है।

    • पापों की क्षमा: यह आध्यात्मिक शुद्धता और अंतिम न्याय के दिन चिंता मुक्ति का वादा है।

4. दया का आश्वासन: "वल्लाहु ग़फूरुर रहीम" (और अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है)

  • आयत का अंत अल्लाह के दो गुणों के साथ होता है जो इस वादे की पुष्टि करते हैं। वह क्षमा करने के लिए तैयार है और उसकी दया हर चीज़ को घेरे हुए है। यह लोगों को निराशा से बचाता है और सकारात्मक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

5. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. प्रेम कर्मों से सिद्ध होता है: सच्चा प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि समर्पण और आज्ञापालन में व्यक्त होता है। यह ईश्वर के प्रति हमारे प्रेम के लिए भी सत्य है।

  2. पैगंबर का आदर्श मार्गदर्शन है: इस्लाम में, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) केवल एक संदेशवाहक ही नहीं हैं, बल्कि ईश्वर की इच्छा को समझने और जीने का एक जीवंत उदाहरण हैं। उनका अनुसरण ही सीधा मार्ग है।

  3. आशा और प्रयास का मार्ग: यह आयत निराशा नहीं, बल्कि आशा देती है। यह बताती है कि ईश्वर का प्रेम और क्षमा प्राप्त करना एक स्पष्ट और सुलभ मार्ग के माध्यम से संभव है।

6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता

  • अतीत में प्रासंगिकता:

    • अहले-किताब के लिए चुनौती: यह आयत यहूदियों और ईसाइयों के लिए एक सीधी चुनौती थी, जो दावा करते थे कि वे अल्लाह से प्रेम करते हैं, लेकिन उसके अंतिम पैगंबर, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को स्वीकार नहीं कर रहे थे। यह उनके दावे की सच्चाई की कसौटी थी।

    • मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन: प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के लिए, यह आयत उनके विश्वास और कर्मों के बीच एक स्पष्ट कड़ी स्थापित करती थी।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता:

    • आध्यात्मिकता बनाम औपचारिकता: आज, कई लोग स्वयं को "आध्यात्मिक" मानते हैं और ईश्वर से "प्रेम" का दावा करते हैं, लेकिन किसी ईश्वरीय मार्गदर्शन या नैतिक कोड का पालन करने से इनकार करते हैं। यह आयत बताती है कि सच्ची आध्यात्मिकता में ईश्वरीय मार्गदर्शन के प्रति समर्पण शामिल है।

    • पैगंबर की छवि का संकट: इस आयत का सार यह है कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का सम्मान केवल उनके नाम का उच्चारण करने से नहीं, बल्कि उनके आदर्शों - उनकी दया, ईमानदारी, न्याय और समर्पण - को अपने जीवन में उतारने से होता है।

    • एकता का सूत्र: यह आयत सभी मुसलमानों के लिए एक सार्वभौमिक सिद्धांत प्रस्तुत करती है। ईश्वर का प्रेम पाने का मार्ग सभी के लिए एक है: पैगंबर के मार्ग का अनुसरण।

  • भविष्य में प्रासंगिकता:

    • शाश्वत मानदंड: जब तक दुनिया रहेगी, "प्रेम और आज्ञाकारिता" के बीच का यह संबंध एक स्थायी मानदंड बना रहेगा। यह आयत हर युग के लोगों को यह जांचने के लिए आमंत्रित करती रहेगी कि क्या उनका प्रेम वास्तविक है।

    • भविष्य की चुनौतियों के लिए मार्गदर्शन: जैसे-जैसे समाज बदलता है, नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती रहेंगी। यह आयत एक स्थिर बिंदु प्रदान करती है: मार्गदर्शन के लिए पैगंबर के आदर्श और शिक्षाओं की ओर देखो।

    • सच्चे प्रेम की परिभाषा: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह सिखाती रहेगी कि ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम एक सक्रिय, समर्पित और अनुकरणीय जीवन जीने में निहित है, न कि केवल निष्क्रिय भावना में।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:31 केवल एक आज्ञा नहीं है; यह एक आध्यात्मिक सूत्र है। यह हमें सिखाती है कि ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम हमारे कर्मों, हमारे समर्पण और एक पवित्र आदर्श के प्रति हमारी निष्ठा के माध्यम से सिद्ध होता है। यह अतीत में एक चुनौती थी, वर्तमान में एक मार्गदर्शक प्रकाश है और भविष्य के लिए एक शाश्वत सत्य है कि ईश्वर का प्रेम और क्षमा उन्हीं के लिए है जो सच्चे मन से उसके मार्ग का अनुसरण करते हैं।