1. पूरी आयत अरबी में:
قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَالرَّسُولَ ۖ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْكَافِرِينَ
2. आयत का शब्द-दर-शब्द अर्थ (Word-to-Word Meaning):
قُلْ (कुल): (आप) कह दीजिए।
أَطِيعُوا (अतीऊ): इताअत करो (आज्ञा का पालन करो)।
اللَّهَ (अल्लाह): अल्लाह की।
وَالرَّسُولَ (वर-रसूल): और रसूल (पैगंबर) की।
ۖ فَإِنْ (फा-इन): फिर अगर।
تَوَلَّوْا (तवल्लौ): वे मुंह मोड़ लेते हैं (अवज्ञा करते हैं)।
فَإِنَّ (फा-इन्न): तो निश्चित रूप से।
اللَّهَ (अल्लाह): अल्लाह।
لَا يُحِبُّ (ला युहिब्बु): पसंद नहीं करता।
الْكَافِرِينَ (अल-काफिरीन): इनकार करने वालों को।
3. आयत का पूरा अर्थ (Full Translation):
(हे पैगंबर!) आप कह दें: "अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) की आज्ञा का पालन करो।" फिर अगर वे मुंह मोड़ लेते हैं (इनकार कर देते हैं), तो निश्चित रूप से अल्लाह काफिरों (अवज्ञाकारियों) को पसंद नहीं करता।
4. पूर्ण व्याख्या और तफ्सीर (Full Explanation & Tafseer):
यह आयत सूरह आल-ए-इमरान में आई है और इस्लामी जीवन की बुनियाद को बहुत स्पष्ट शब्दों में बयान करती है।
आदेश का स्वरूप: आयत की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को एक सीधा आदेश देती है – "कुल" (आप कह दें)। यह एक घोषणा है जो सभी लोगों के लिए है।
आज्ञापालन का दायरा: आज्ञापालन के लिए दो चीजें बताई गई हैं – "अल्लाह और रसूल"। अल्लाह की इताअत का अर्थ है उसकी किताब (क़ुरआन) में दिए गए हुक्मों का पालन करना। जबकि रसूल की इताअत का अर्थ है उनकी सुन्नत (बातें, कार्य और स्वीकृति) का पालन करना। दोनों को एक साथ जोड़ा गया है, जिससे साबित होता है कि अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलने के लिए पैगंबर के मार्गदर्शन के बिना चलना अधूरा है। रसूल की इताअत असल में अल्लाह की ही इताअत है।
अवज्ञा का परिणाम: आयत का दूसरा भाग एक गंभीर चेतावनी है। यह बताता है कि अगर कोई व्यक्ति या समुदाय इस आह्वान को ठुकरा देता है और "मुंह मोड़ लेता है" (तवल्लौ), तो उसका नतीजा यह है कि वह अल्लाह की नाराज़गी को मोल लेता है। "मुंह मोड़ना" सिर्फ इनकार तक सीमित नहीं है, बल्कि उस हिदायत और मार्गदर्शन से दूर हो जाना है जो उसे मिला है।
अंतिम चेतावनी: आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि "अल्लाह काफिरों को पसंद नहीं करता।" यहाँ "काफिरीन" शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है। यह सिर्फ गैर-मुसलमानों के लिए नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए है जो सच्चाई को जानने के बाद भी उससे मुंह मोड़ लेते हैं, अहंकारवश या जिद के कारण अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों को नहीं मानते। ऐसे लोग अल्लाह की दया और उसकी प्रेमपूर्ण कृपा से दूर हो जाते हैं।
5. सीख और शिक्षा (Lesson & Moral):
ईमान की कसौटी: अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करना ईमान की सबसे बड़ी निशानी और पहली शर्त है। यह केवल कुछ रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू (नैतिकता, समाज, अर्थव्यवस्था, कानून) में इसका पालन जरूरी है।
सफलता का मार्ग: दुनिया और आखिरत में सच्ची सफलता और शांति इसी आज्ञापालन में छिपी हुई है।
अहंकार से बचाव: इंसान को अहंकार और जिद से बचना चाहिए, क्योंकि यही चीजें उसे सच्चाई स्वीकार करने से रोकती हैं और अल्लाह की नाराज़गी का कारण बनती हैं।
जिम्मेदारी का बोध: यह आयत हर मुसलमान को यह एहसास दिलाती है कि उसकी जिम्मेदारी सिर्फ अपनी इबादत तक सीमित नहीं है, बल्कि अल्लाह और रसूल के आदेशों को अपने जीवन में पूरी तरह से लागू करना भी है।
6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present & Future):
अतीत में (In the Past):
पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जमाने में, यह आयत मक्का के मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) और मदीना के यहूदियों के लिए एक स्पष्ट चुनौती थी, जो अल्लाह के दीन को नहीं अपना रहे थे।
यह मुसलमानों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत था कि हर मामले में पैगंबर के फैसले को ही अंतिम मानें, चाहे वह युद्ध का मैदान हो या शांति का समय।
वर्तमान में (In the Present):
धार्मिक भ्रम: आज ऐसे कई समुदाय और "इस्लामिक" समूह हैं जो सीधे तौर पर क़ुरआन और सुन्नत के कुछ हुक्मों को नहीं मानते और अपनी मनमानी व्याख्याएं पेश करते हैं। यह आयत उन सभी के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है।
व्यक्तिगत जीवन: आज का मुसलमान जब अपने जीवन में इस्लामी शिक्षाओं (जैसे ईमानदारी, विनम्रता, हलाल रोजी) के बजाय पश्चिमी संस्कृति या अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देता है, तो वह भी इस आयत के दायरे में आ जाता है।
सामूहिक जीवन: मुस्लिम समाज जब इस्लामी कानून (शरीअत) को छोड़कर गैर-इस्लामी कानूनों को अपनाता है, तो यह आयत उन्हें उनकी इस गलती की याद दिलाती है।
भविष्य के लिए (For the Future):
यह आयत हमेशा एक कसौटी बनी रहेगी। जब तक दुनिया रहेगी, अल्लाह के बंदों के सामने दो ही रास्ते होंगे – आज्ञापालन का रास्ता जो जन्नत की ओर ले जाता है, और अवज्ञा का रास्ता जो जहन्नुम की ओर ले जाता है।
यह भविष्य की सभी चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है। चाहे technology का मामला हो, social issues हों या नैतिक दुविधाएँ, इसका समाधान हमेशा "अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन" करने में ही निहित रहेगा। यह एक शाश्वत और सार्वभौमिक संदेश है।
निष्कर्ष: कुल मिलाकर, कुरआन 3:32 इस्लाम के मूल सिद्धांत को बहुत ही संक्षिप्त और प्रभावशाली ढंग से पेश करती है। यह मनुष्य के लिए जीवन का लक्ष्य निर्धारित करती है, सही रास्ता दिखाती है और गलत रास्ते पर चलने के भयानक परिणामों से आगाह करती है।