1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
مِن قَبْلُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ الْفُرْقَانَ ۗ إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
مِن قَبْلُ (मिन कब्लु): पहले (समय में)।
هُدًى (हुदan): मार्गदर्शन।
لِّلنَّاسِ (लिन्नास): लोगों के लिए।
وَأَنزَلَ (वा अन्ज़ला): और उतारा।
الْفُرْقَانَ (अल-फुर्क़ान): सत्य और असत्य में अंतर करने वाला (यहाँ क़ुरआन)।
إِنَّ (इन्ना): बेशक / निस्संदेह।
الَّذِينَ (अल्लज़ीना): जिन लोगों ने।
كَفَرُوا (कफरू): इनकार किया, कुफ्र किया।
بِآيَاتِ (बि-आयाति): आयतों (निशानियों) से।
اللَّهِ (अल्लाह): अल्लाह की।
لَهُمْ (लहुम): उनके लिए है।
عَذَابٌ (अज़ाबुन): यातना / दंड।
شَدِيدٌ (शदीदुन): कठोर / सख्त।
وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।
عَزِيزٌ (अज़ीज़ुन): प्रभुत्वशाली, ताकतवर।
ذُو (ज़ू): वाला।
انتِقَامٍ (इन्तिक़ाम): बदला लेने वाला।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत (3:3) के संदर्भ को आगे बढ़ाती और पूरा करती है। पिछली आयत में अल्लाह ने क़ुरआन, तौरात और इंजील के उतरने का उल्लेख किया था। इस आयत में वह इन किताबों के उद्देश्य और फिर उनको ठुकराने वालों के परिणाम की चेतावनी दे रहा है।
इस आयत के तीन मुख्य भाग हैं:
1. मिन कब्लु हुदन लिन्नास (पहले लोगों के लिए मार्गदर्शन था):
यह वाक्य पिछली आयत से जुड़ा है। अल्लाह कह रहा है कि उसने तौरात और इंजील को भी "हुदा" (मार्गदर्शन) बनाकर उतारा था। यानी उनका मूल उद्देश्य भी वही था जो क़ुरआन का है – इंसानों को सही रास्ता दिखाना, अल्लाह की पहचान कराना और उसकी मर्जी के अनुसार जीवन जीने का तरीका सिखाना।
2. वा अन्ज़लल फुर्क़ान (और उसने फुर्क़ान उतारा):
"अल-फुर्क़ान" क़ुरआन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाम है, जिसका अर्थ है "सच और झूठ, हलाल और हराम, अच्छाई और बुराई के बीच फर्क करने वाला"।
क़ुरआन को फुर्क़ान इसलिए कहा गया है क्योंकि यह हर मामले में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। यह संदेह और भ्रम को दूर करके स्पष्ट सत्य को प्रकट कर देता है।
3. इन्नल्लज़ीना कफरू... (बेशक जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया...):
यह आयत का चेतावनी वाला भाग है। अल्लाह स्पष्ट कहता है कि जो लोग उसकी आयतों (निशानियों) का इनकार करेंगे, उनके लिए "शदीद अज़ाब" (कठोर यातना) तैयार है।
इसके बाद अल्लाह अपने दो गुण बताता है: "अज़ीज़" (सर्व-शक्तिमान, प्रभुत्वशाली) और "ज़ुल-इन्तिक़ाम" (बदला लेने वाला)। यह बताने के लिए कि उसकी चेतावनी कोई खोखली धमकी नहीं है। वह ताकत रखता है कि इनकार करने वालों को दंड दे सके और न्याय कर सके।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
ईश्वरीय ग्रंथों का उद्देश्य: सभी ईश्वरीय ग्रंथों का मुख्य उद्देश्य मार्गदर्शन देना है, न कि केवल एक पूजा-पद्धति बताना। हमें उन्हें इसी नज़रिए से पढ़ना और समझना चाहिए।
क़ुरआन की भूमिका: क़ुरआन हमारे जीवन का "फुर्क़ान" है। यह हमें हर पल, हर फैसले में सही और गलत का फर्क करना सिखाता है। हमें इसे अपने जीवन का केंद्र बनाना चाहिए।
जिम्मेदारी और चेतावनी: ईमान लाने का निमंत्रण एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। इस आयत से पता चलता है कि अल्लाह की आयतों को ठुकराने और उनका मज़ाक उड़ाने का परिणाम बहुत भयानक है। यह इंसान को कुफ्र से बचने की चेतावनी देती है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
पैगंबर के समय में: यह आयत उन यहूदी और ईसाई विद्वानों के लिए एक सबूत थी जो तौरात और इंजील के मार्गदर्शन को जानते थे, लेकिन क़ुरआन को स्वीकार नहीं कर रहे थे। यह उनसे पूछती थी कि जब तुम मानते हो कि पहली किताबें मार्गदर्शन हैं, तो इस अंतिम मार्गदर्शन (क़ुरआन) को क्यों नहीं मानते?
मक्का के मुशरिकों के लिए: यह उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो क़ुरआन की आयतों को सुनकर भी उनका इनकार करते थे।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
नैतिक भ्रम का युग: आज का युग नैतिकता और सापेक्षवाद (Relativism) का युग है, जहाँ सही और गलत का कोई स्थायी मापदंड नहीं रह गया है। क़ुरआन "अल-फुर्क़ान" के रूप में इसी भ्रम को दूर करता है और स्पष्ट मानदंड देता है।
धार्मिक उग्रवाद और प्रतिक्रिया: कुछ लोग आतंकवाद के नाम पर इस्लाम और क़ुरआन को बदनाम करते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि क़ुरआन तो "हुदा" (मार्गदर्शन) और "फुर्क़ान" (सत्य-असत्य का कसौटी) है। दूसरी ओर, यह उन मुसलमानों के लिए भी चेतावनी है जो क़ुरआन की शिक्षाओं को भुला बैठे हैं।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत मानदंड: जब तक दुनिया रहेगी, मानवता को सही और गलत के मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी। क़ुरआन का "फुर्क़ान" होना भविष्य की हर चुनौती, हर नए ethical dilemma (नैतिक दुविधा) के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करेगा।
अंतिम न्याय का सिद्धांत: यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि मानव जीवन का एक अंतिम लक्ष्य (आखिरत) है और वहाँ हर इंसान को उसके कर्मों का हिसाब देना है। यह सिद्धांत भविष्य की हर पीढ़ी को नैतिक जिम्मेदारी का एहसास कराएगा।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:4 हमें यह याद दिलाती है कि अल्लाह का मार्गदर्शन एक सतत प्रक्रिया है और क़ुरआन उसका अंतिम, स्पष्ट और निर्णायक रूप है। यह एक ओर जहाँ मार्गदर्शन का स्रोत है, वहीं दूसरी ओर ईमान से मुंह मोड़ने वालों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी भी है, जो हर युग में प्रासंगिक है।