Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 3:86 की पूरी व्याख्या

 

﴿كَيْفَ يَهْدِي اللَّهُ قَوْمًا كَفَرُوا بَعْدَ إِيمَانِهِمْ وَشَهِدُوا أَنَّ الرَّسُولَ حَقٌّ وَجَاءَهُمُ الْبَيِّنَاتُ ۚ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 86)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • كَيْفَ يَهْدِي اللَّهُ قَوْمًا (Kaifa yahdil-laahu qawman): अल्लाह कैसे मार्गदर्शन करेगा एक ऐसे समुदाय को?

  • كَفَرُوا بَعْدَ إِيمَانِهِمْ (Kafaroo ba'da eemaanihim): जिन्होंने इनकार किया अपने ईमान लाने के बाद।

  • وَشَهِدُوا أَنَّ الرَّسُولَ حَقٌّ (Wa shahidoo anar-Rasoola haqqun): और उन्होंने गवाही दी कि रसूल सच्चा है।

  • وَجَاءَهُمُ الْبَيِّنَاتُ (Wa jaa'ahumul-bayyinaat): और उनके पास स्पष्ट प्रमाण आ चुके थे।

  • وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ (Wallaahu laa yahdil-qawmaz-zaalimeen): और अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्गदर्शन नहीं देता।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत उन लोगों की भयानक स्थिति का वर्णन करती है जो ईमान लाने के बाद फिर से कुफ्र (इनकार) में लौट जाते हैं। यह एक तार्किक प्रश्न पूछती है और फिर उसका उत्तर देती है।

इस आयत में चार चरणों में उनके अपराध को बताया गया है:

  1. ईमान लाना: सबसे पहले उन्होंने ईमान कबूल किया था। उन्होंने सच्चे दिल से इस्लाम को स्वीकार किया था।

  2. रसूल की सच्चाई की गवाही देना: उन्होंने सिर्फ ईमान ही नहीं लाया, बल्कि खुले तौर पर यह गवाही भी दी कि "पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सच्चे हैं।" यानी उन्होंने अपने ईमान का ऐलान किया।

  3. स्पष्ट प्रमाणों का आना: उनके पास ईमान की सच्चाई के लिए "बय्यिनात" (स्पष्ट प्रमाण) आ चुके थे। ये प्रमाण कुरआन की आयतें, पैगंबर के चमत्कार और उनका निर्मल चरित्र थे।

  4. ईमान के बाद इनकार करना: इन सबके बावजूद, उन्होंने जानबूझकर अपना ईमान छोड़ दिया और कुफ्र को अपना लिया। यह कोई भूल नहीं, बल्कि एक सोचा-समझा विद्रोह था।

अल्लाह का नियम:
इस सबके बाद अल्लाह पूछता है: "अल्लाह ऐसे लोगों का मार्गदर्शन कैसे करेगा?" और फिर खुद जवाब देता है: "और अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्गदर्शन नहीं देता।"

यहाँ "ज़ालिम" (अन्यायी) वह है जिसने अपने ऊपर सबसे बड़ा ज़ुल्म (अन्याय) किया। ईमान जैसी महान नेमत को जानबूझकर ठुकराना और कुफ्र को अपनाना अपने आप पर सबसे बड़ा अत्याचार है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. ईमान की हिफाजत जरूरी: ईमान लाना ही काफी नहीं है, उसे बनाए रखना और उसकी रक्षा करना भी उतना ही जरूरी है।

  2. ईमान के बाद कुफ्र भयानक पाप: ईमान लाने के बाद उसे छोड़ देना सबसे गंभीर पापों में से एक है और अल्लाह की नाराजगी का कारण बनता है।

  3. अल्लाह की रहमत के दरवाजे: जब कोई व्यक्ति जानबूझकर सच्चाई को ठुकरा देता है, तो अल्लाह की तरफ से मार्गदर्शन बंद हो जाता है। हालाँकि, तौबा (पश्चाताप) का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत उन "मुरतद्दीन" (धर्मत्यागियों) के लिए एक चेतावनी थी जो इस्लाम लेने के बाद भी यहूदियों या मुशरिकों के बहकावे में आकर फिर से कुफ्र में लौट गए थे।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • मुरतद (धर्मत्यागी) की स्थिति: आज भी कुछ लोग इस्लाम को जानने-समझने के बाद भी, दबाव, लालच या भ्रम में आकर इस्लाम छोड़ देते हैं। यह आयत उनके लिए एक गंभीर चेतावनी है।

    • घटते ईमान से सावधानी: कई मुसलमान औपचारिक रूप से तो मुसलमान रहते हैं, लेकिन उनका ईमान कमजोर होता जाता है और वह गुनाहों में डूब जाते हैं। यह आयत उन्हें भी चेताती है कि ईमान की हिफाजत करें।

    • दावत का महत्व: यह आयत दावत (इस्लाम का निमंत्रण) देने वालों को सिखाती है कि जिन लोगों के पास सच्चाई स्पष्ट हो चुकी है, उनके इनकार का कोई बहाना नहीं है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा "ईमान की स्थिरता और उसके बाद के इनकार के भयानक परिणाम" की याद दिलाती रहेगी। भविष्य में जब भी कोई व्यक्ति सच्चाई को जानने के बाद भी उससे मुँह मोड़ेगा, यह आयत उसके लिए अल्लाह के इस नियम की याद दिलाएगी कि वह ऐसे ज़ालिमों को मार्गदर्शन नहीं देता। यह आयत हर युग के मुसलमानों को अपने ईमान की सुरक्षा के प्रति सजग रहने की प्रेरणा देती रहेगी।