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कुरआन की आयत 3:87 की पूरी व्याख्या

 

﴿أُولَٰئِكَ جَزَاؤُهُمْ أَنَّ عَلَيْهِمْ لَعْنَةَ اللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 87)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • أُولَٰئِكَ (Ulaa'ika): ऐसे लोग।

  • جَزَاؤُهُمْ (Jazaa'uhum): उनकी सज़ा यह है।

  • أَنَّ عَلَيْهِمْ (Anna 'alaihim): कि उन पर है।

  • لَعْنَةَ اللَّهِ (La'natallaah): अल्लाह की लानत (दूरी और नाराज़गी)।

  • وَالْمَلَائِكَةِ (Wal-malaa'ikati): और फ़रिश्तों की (लानत)।

  • وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ (Wan-naasi ajma'een): और सभी लोगों की (लानत)।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत पिछली आयत में वर्णित उन लोगों के भयानक परिणाम की घोषणा करती है जो ईमान लाने के बाद फिर कुफ्र (इनकार) में लौट गए। यह एक ऐसी सज़ा का वर्णन है जो तीन स्तरों पर होती है और जिससे कोई भी बच नहीं सकता।

इन लोगों पर तीन प्रकार की "लानत" (अल्लाह की रहमत से दूरी और नाराज़गी) टिकी हुई है:

  1. अल्लाह की लानत: यह सबसे बड़ी और मुख्य सज़ा है। इसका मतलब है कि अल्लाह की रहमत, उसकी दया और उसकी खुशी उनसे सदा के लिए दूर हो गई है। वह अल्लाह की पनाह और कृपा से वंचित हो गए हैं।

  2. फ़रिश्तों की लानत: फ़रिश्ते, जो अल्लाह के पवित्र और आज्ञाकारी बन्दे हैं, ऐसे लोगों से नफरत करते हैं और उनके लिए अल्लाह से माफी की दुआ भी नहीं करते। बल्कि, वह भी उन पर लानत भेजते हैं क्योंकि उन्होंने अल्लाह के साथ विश्वासघात किया है।

  3. सभी लोगों की लानत: आखिर में, "सभी लोग" भी उन पर लानत भेजते हैं। इसमें शामिल हैं:

    • ईमान वाले लोग: जो उनके इस गद्दारी भरे काम से नफरत करते हैं।

    • इतिहास के लोग: कयामत तक आने वाली हर पीढ़ी के नेक लोग ऐसे धोखेबाजों पर लानत भेजेंगे।

    • खुद उनकी अपनी अंतरात्मा: एक मानसिक स्तर पर, उनका अपना विवेक भी उन्हें कोसता रहेगा।

संक्षेप में, ऐसे लोग अल्लाह, उसके फ़रिश्तों और पूरी नेक इंसानियत की नज़र में घृणा के पात्र बन जाते हैं।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. ईमान के साथ विश्वासघात का भयानक परिणाम: ईमान लाने के बाद उसे छोड़ना सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि एक ऐसा जुर्म है जिसकी सज़ा दुनिया और आखिरत में बहुत भारी है।

  2. लानत का मतलब: "लानत" का मतलब केवल गाली देना नहीं है। यह एक दिव्य दंड है जो इंसान को अल्लाह की रहमत और उसके बन्दों की हमदर्दी से दूर कर देता है।

  3. ईमान की कदर: इस आयत से ईमान की असली कीमत और उसकी हिफाजत की अहमियत का पता चलता है। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत उन लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी थी जो दबाव या लालच में आकर इस्लाम छोड़ देते थे। यह समाज में उनकी इज्जत को भी खत्म कर देती थी।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • धर्मत्यागियों के लिए चेतावनी: आज भी जो लोग इस्लाम छोड़ते हैं, उनके लिए यह आयत एक गंभीर चेतावनी है कि उनका यह कदम केवल अल्लाह ही नहीं, बल्कि पूरी नेक इंसानियत की नज़र में गिरा हुआ है।

    • ईमान की हिफाजत: यह आयत हर मुसलमान को याद दिलाती है कि उसे अपने ईमान की रक्षा किसी भी कीमत पर करनी है और ऐसे माहौल या लोगों से दूर रहना है जो उसे ईमान से डिगा सकते हैं।

    • समाज की जिम्मेदारी: मुस्लिम समाज का भी यह दायित्व है कि वह ऐसे लोगों को समझाए और उन्हें इस भयानक नतीजे से आगाह करे।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा "ईमान के साथ दगाबाजी के भयानक परिणाम" की एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी। भविष्य में जब भी कोई व्यक्ति ईमान को ठुकराने का विचार करेगा, यह आयत उसके सामने तीन-स्तरीय लानत की तस्वीर पेश करेगी। यह आयत हर युग के मुसलमानों को ईमान की अहमियत समझाती रहेगी और उन्हें इस नेमत की हिफाजत के लिए सचेत करती रहेगी।