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कुरआन की आयत 3:89 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَبَيَّنُوا فَأُولَٰئِكَ أَتُوبُ عَلَيْهِمْ وَأَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيمُ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 89)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا (Illal-lazeena taaboo): सिवाय उन लोगों के जिन्होंने तौबा की।

  • وَأَصْلَحُوا (Wa aslahoo): और सुधार किया।

  • وَبَيَّنُوا (Wa bayyanoo): और स्पष्ट कर दिया (सच्चाई को)।

  • فَأُولَٰئِكَ (Fa-ulaa'ika): तो ऐसे लोग।

  • أَتُوبُ عَلَيْهِمْ (Atoobu 'alaihim): मैं उनकी तौबा क़बूल करता हूँ।

  • وَأَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيمُ (Wa anat-Tawwaabur-Raheem): और मैं बहुत तौबा क़बूल करने वाला, बहुत दयालु हूँ।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत पिछली कड़ी आयतों में वर्णित भयानक चेतावनी के बाद एक रोशनी की किरण और आशा का संदेश लेकर आती है। अल्लाह अपनी असीम दया और रहमत को प्रकट करते हुए बताता है कि उसकी माफी का दरवाजा अभी भी खुला है।

यह आयत उन लोगों के लिए एक अपवाद (Exception) है जिन्होंने ईमान लाने के बाद कुफ्र किया था। अगर वह सच्चे दिल से सुधर जाएँ, तो अल्लाह उन्हें माफ कर देगा।

माफी पाने के लिए तीन शर्तें हैं:

  1. तौबा करना (वापस लौटना): सबसे पहले उन्हें अपने किए पर पछतावा होना चाहिए और अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाकर माफी माँगनी चाहिए। यह तौबा डर और उम्मीद के साथ होनी चाहिए।

  2. सुधार करना: सिर्फ माफी माँगना ही काफी नहीं है। उन्हें अपने आचरण और कर्मों को सुधारना होगा। गलत रास्ते को छोड़कर फिर से इस्लाम और नेकी के रास्ते पर आ जाना होगा।

  3. सच्चाई को स्पष्ट करना: यह एक बहुत महत्वपूर्ण शर्त है। उन्हें खुले तौर पर सच्चाई का एलान करना होगा। जिस तरह उन्होंने कुफ्र को公开 (Publicly) अपनाया था, उसी तरह अब ईमान को Publicly अपनाना होगा। अपनी तौबा और सुधार को छिपाना नहीं है।

अल्लाह का वादा:
जो लोग इन तीनों शर्तों को पूरा करेंगे, अल्लाह उनके बारे में फरमाता है: "तो ऐसे लोग, मैं उनकी तौबा क़बूल करता हूँ।" और फिर अल्लाह अपने दो पवित्र नाम बताकर अपनी दया का भरोसा दिलाता है:

  • अत-तव्वाब: बार-बार तौबा क़बूल करने वाला। वह अपने बन्दों की तौबा को बार-बार स्वीकार करता है।

  • अर-रहीम: बहुत दयालु। उसकी दया हर चीज पर भारी है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. तौबा का दरवाजा खुला है: कोई भी गुनाह, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, अल्लाह की दया से बड़ा नहीं है। सच्ची तौबा के साथ लौटने वाले को अल्लाह जरूर माफ करेगा।

  2. तौबा की शर्तें: तौबा सिर्फ जुबानी माफी नहीं है। उसके लिए पछतावा, कर्मों में सुधार और सच्चाई को公开 स्वीकार करना जरूरी है।

  3. अल्लाह की दया पर भरोसा: एक मोमिन को हमेशा अल्लाह की दया से निराश नहीं होना चाहिए। उसे हमेशा उसकी रहमत से जुड़े रहना चाहिए।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत उन लोगों के लिए एक जीवन रेखा थी जो इस्लाम छोड़ चुके थे लेकिन वापस लौटना चाहते थे। इसने उन्हें सुधरने का मौका और हिम्मत दी।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • पश्चाताप करने वालों के लिए आशा: आज जो लोग गलत रास्ते पर चले गए हैं, इस्लाम छोड़ चुके हैं, या कोई बड़ा गुनाह कर बैठे हैं, उनके लिए यह आयत आशा की किरण है। यह उन्हें बताती है कि वापसी का रास्ता अभी भी खुला है।

    • सच्ची तौबा की समझ: यह आयत लोगों को सच्ची तौबा का तरीका सिखाती है। सिर्फ 'माफ कर दो' कह देने से काम नहीं चलेगा, बल्कि जीवन में सुधार और公开 स्वीकारोक्ति जरूरी है।

    • अल्लाह की दया का एहसास: यह आयत हर मुसलमान के दिल में अल्लाह की दया और माफी के प्रति विश्वास पैदा करती है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक "तौबा और माफी की सार्वभौमिक घोषणा" बनी रहेगी। भविष्य में जब भी कोई व्यक्ति पाप या गुमराही में डूबा होगा, यह आयत उसे सच्चे दिल से अल्लाह की ओर लौटने का साहस देगी। यह आयत हमेशा यह सुनिश्चित करेगी कि अल्लाह की दया उसके गुस्से पर भारी रहे और हर पीढ़ी को सुधार और माफी का संदेश मिलता रहे।