﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بَعْدَ إِيمَانِهِمْ ثُمَّ ازْدَادُوا كُفْرًا لَّن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الضَّالُّونَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 90)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بَعْدَ إِيمَانِهِمْ (Innal-lazeena kafaroo ba'da eemaanihim): निश्चित रूप से जिन लोगों ने इनकार किया अपने ईमान के बाद।
ثُمَّ ازْدَادُوا كُفْرًا (Thummaz-daadoo kufran): फिर बढ़ा दिया कुफ्र को (और अधिक कुफ्र किया)।
لَّن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ (Lan tuqbala tawbatuhum): उनकी तौबा कभी स्वीकार नहीं की जाएगी।
وَأُولَٰئِكَ هُمُ الضَّالُّونَ (Wa ulaa'ika humud-daaloon): और ऐसे ही लोग (सच्चे) गुमराह हैं।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत पिछली आयत में बताई गई आशा के बाद एक बहुत ही गंभीर चेतावनी देती है। यह उन लोगों के बारे में है जो न सिर्फ ईमान के बाद कुफ्र करते हैं, बल्कि उस कुफ्र में और गहरे उतर जाते हैं।
इस आयत में उनके अपराध के तीन चरण बताए गए हैं:
ईमान के बाद इनकार (कुफ्र): सबसे पहले उन्होंने ईमान को स्वीकार किया और फिर उसका इनकार कर दिया। यह पहली बड़ी गद्दारी है।
कुफ्र में वृद्धि (इज़्दाद): सिर्फ इनकार करना ही काफी नहीं, बल्कि वह "कुफ्र में और बढ़ गए।" इसका मतलब है:
उन्होंने अपने कुफ्र पर डटे रहना और उसे और मजबूत करना।
इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ दुश्मनी और शत्रुता में लगे रहना।
लोगों को इस्लाम से रोकना और उसके खिलाफ प्रचार करना।
अपने कुफ्र पर गर्व महसूस करना।
परिणाम:
ऐसे लोगों के लिए अल्लाह का फैसला बहुत सख्त है: "उनकी तौबा कभी स्वीकार नहीं की जाएगी।" यानी अब उनके लिए माफी का दरवाजा बंद हो चुका है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने अल्लाह की नेमत (ईमान) को न सिर्फ ठुकराया, बल्कि उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उनका दिल सच्ची तौबा के लिए तैयार ही नहीं है।
अंतिम पहचान:
आयत का अंत इस भयानक घोषणा के साथ होता है: "और ऐसे ही लोग (सच्चे) गुमराह हैं।" यहाँ "दाल्लून" (गुमराह) का मतलब है वह लोग जो सच्चाई से इतने दूर भटक गए हैं कि उनका लौट पाना लगभग नामुमकिन हो गया है।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
ईमान के साथ खिलवाड़ न करें: ईमान लाने के बाद उसे छोड़ना और फिर कुफ्र को अपनाना एक भयानक पाप है, लेकिन उस पर अड़े रहना और उसे बढ़ाना सबसे बड़ी विनाशकारी गलती है।
तौबा की अहमियत: जब तक इंसान जीवित है और सच्चे दिल से तौबा करने को तैयार है, तौबा का दरवाजा खुला है। लेकिन जो लोग कुफ्र पर अड़े रहते हैं और उसे बढ़ाते हैं, उनके लिए यह दरवाजा बंद हो जाता है।
अल्लाह की निशानियों का मजाक न उड़ाएँ: जो लोग जान-बूझकर सच्चाई का मजाक उड़ाते हैं और उसके खिलाफ लड़ते हैं, वह इसी श्रेणी में आते हैं।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत उन नेताओं और विद्वानों के लिए एक सख्त चेतावनी थी जो पहले इस्लाम लाए, फिर उसे छोड़कर इस्लाम के खिलाफ जमकर लड़े और लोगों को गुमराह किया।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:
इस्लाम विरोधी प्रचारक: आज जो लोग जानबूझकर इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के खिलाफ नफरत फैलाते हैं और झूठा प्रचार करते हैं, खासकर वह जो पहले मुसलमान थे, उनके लिए यह आयत एक गंभीर चेतावनी है।
ईमान की हिफाजत: आम मुसलमानों के लिए यह आयत एक चेतावनी है कि वह ऐसे लोगों और उनके प्रभाव से दूर रहें जो उनके ईमान को कमजोर कर सकते हैं।
दावत का तरीका: दावत देने वालों को समझना चाहिए कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके दिल मुहर कर दिए गए हैं और वह कभी सच्चाई स्वीकार नहीं करेंगे।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा "सच्ची गुमराही की पहचान" का मानदंड बनी रहेगी। भविष्य में जब भी कोई व्यक्ति या समूह सच्चाई को जानने के बाद न सिर्फ उसे ठुकराएगा बल्कि उसके खिलाफ अभियान छेड़ेगा, यह आयत उसकी स्थिति को परिभाषित करेगी। यह आयत हर युग के लोगों को सिखाती रहेगी कि अल्लाह की दया से निराश न हों, लेकिन उसकी सजा से भी बेखबर न रहें।