﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ الْأَرْضِ ذَهَبًا وَلَوِ افْتَدَىٰ بِهِ ۗ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 91)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا (Innal-lazeena kafaroo): निश्चित रूप से जिन लोगों ने इनकार किया।
وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ (Wa maatoo wa hum kuffaar): और मर गए, और वह काफिर ही थे।
فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم (Falan yuqbala min ahadihim): तो कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा उनमें से किसी एक से।
مِّلْءُ الْأَرْضِ ذَهَبًا (Mil'al-ardhi zahaban): धरती भर सोना।
وَلَوِ افْتَدَىٰ بِهِ (Wa lawif-tadaa bihi): भले ही वह उसके बदले (अपनी सज़ा से छुटकारा) खरीदना चाहे।
أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (Ulaa'ika lahum 'azaabun aleem): ऐसे लोगों के लिए दर्दनाक यातना है।
وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ (Wa maa lahum min naasireen): और उनका कोई मददगार नहीं होगा।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत उन लोगों के भयानक भविष्य का वर्णन करती है जो कुफ्र (इनकार) की हालत में दुनिया से जाते हैं। यह आयत इस बात को स्पष्ट करती है कि आखिरत में दुनिया का कोई भी धन-दौलत काम नहीं आएगी।
आयत के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
कुफ्र की हालत में मौत: आयत उन लोगों के बारे में है जिन्होंने सच्चाई को ठुकराया और "काफिर की हालत में ही मर गए।" यानी उन्होंने मरने से पहले तौबा नहीं की और न ही ईमान लाए।
दुनिया का सारा धन बेकार: अल्लाह कहता है कि अगर ऐसा व्यक्ति आखिरत में "पूरी धरती भर सोना" भी अल्लाह को देने की पेशकश करे, ताकि अपनी सज़ा से छुटकारा पा सके, तो भी वह "कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा।" यह दर्शाता है कि आखिरत में ईमान की कीमत दुनिया के सारे खजानों से कहीं ज्यादा है।
दर्दनाक यातना: ऐसे लोगों का हिस्सा "दर्दनाक यातना" है। यह यातना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बेहद पीड़ादायक होगी।
कोई मददगार नहीं: सबसे डरावनी बात यह है कि उस दिन "उनका कोई मददगार नहीं होगा।" न कोई वकील, न कोई दोस्त, न कोई रिश्तेदार और न ही कोई देवता उनकी सज़ा को टाल सकेगा या कम कर सकेगा।
संक्षेप में: जो व्यक्ति बिना ईमान लाए दुनिया से जाता है, उसके लिए आखिरत में दुनिया का सारा धन बेकार है और उसे अकेले ही अपनी सज़ा भुगतनी होगी।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
ईमान सबसे बड़ी पूंजी: ईमान ही एकमात्र ऐसी चीज है जो आखिरत में काम आएगी। दुनिया का सारा धन और सोना इसे खरीद नहीं सकता।
मौत से पहले तौबा जरूरी: इंसान को चाहिए कि वह मौत से पहले ही अपने गुनाहों और कुफ्र से तौबा कर ले और ईमान ले आए। मौत के बाद कोई मौका नहीं मिलेगा।
आखिरत की तैयारी: इस आयत से पता चलता है कि हमें दुनिया के धन को जमा करने के बजाय, आखिरत के लिए ईमान और नेक अमल जमा करने चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत अरब के अमीर मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) के लिए एक चेतावनी थी, जो सोचते थे कि उनका धन और हैसियत उन्हें आखिरत में बचा लेगा। इस आयत ने उनकी उस धारणा को तोड़ दिया।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:
भौतिकवादी सोच: आज का इंसान पैसे और सोने-चाँदी को ही सब कुछ मानता है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि मौत के बाद यह सब बेकार है।
गैर-मुस्लिमों के लिए संदेश: जो लोग इस्लाम को नहीं मानते, उनके लिए यह आयत एक सोचने का विषय है कि क्या उनकी संपत्ति उन्हें अल्लाह की सज़ा से बचा पाएगी?
मुसलमानों के लिए चेतावनी: कहीं ऐसा न हो कि कोई मुसलमान भी दुनिया के पीछे इतना भागे कि उसका ईमान कमजोर हो जाए और वह इसी हालत में दुनिया से चला जाए।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक "ईमान के महत्व और धन की सीमाओं" का एक स्थायी प्रमाण बनी रहेगी। भविष्य में जब भी लोग धन और शक्ति को ही सब कुछ समझने लगेंगे, यह आयत उन्हें याद दिलाएगी कि अल्लाह के यहाँ असली मुद्रा "ईमान" है, "सोना" नहीं। यह आयत हर युग के लोगों को जीवन का असली लक्ष्य याद दिलाती रहेगी।