﴿لَن تَنَالُوا الْبِرَّ حَتَّىٰ تُنفِقُوا مِمَّا تُحِبُّونَ ۚ وَمَا تُنفِقُوا مِن شَيْءٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 92)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
لَن تَنَالُوا الْبِرَّ (Lan tanaalul-birra): तुम कभी प्राप्त नहीं कर सकते भलाई (बिर्र) को।
حَتَّىٰ تُنفِقُوا مِمَّا تُحِبُّونَ (Hattaa tunfiqoo mimmaa tuhibboon): जब तक तुम खर्च न करो उसमें से जिसे तुम प्यार करते हो।
وَمَا تُنفِقُوا مِن شَيْءٍ (Wa maa tunfiqoo min shai'in): और तुम जो कुछ भी खर्च करो।
فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ (Fa-innal-laaha bihee 'aleem): तो निश्चित रूप से अल्लाह उसको जानने वाला है।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सिद्धांत स्थापित करती है। यह बताती है कि सच्ची नेकी और अल्लाह की नज़दीकी हासिल करने का रास्ता क्या है।
आयत के दो मुख्य भाग हैं:
शर्त: "तुम कभी प्राप्त नहीं कर सकते भलाई को, जब तक तुम खर्च न करो उसमें से जिसे तुम प्यार करते हो।"
"अल-बिर्र" का मतलब है सर्वोच्च भलाई, पूर्ण धार्मिकता, अल्लाह की रज़ा और जन्नत। यह वह लक्ष्य है जिसे हर मोमिन पाना चाहता है।
"जिसे तुम प्यार करते हो" से मतलब वह प्रिय चीजें हैं जिनसे इंसान का दिल लगाव रखता है। यह सिर्फ पैसा ही नहीं, बल्कि कोई भी कीमती समान, समय, ज्ञान, ताकत, यहाँ तक कि व्यक्तिगत पसंद की कोई भी चीज हो सकती है।
सिद्धांत: असली त्याग और इखलास (ईमानदारी) तब साबित होती है जब इंसान अपनी पसंदीदा और प्रिय चीज अल्लाह की राह में देता है। सिर्फ फालतू या बेकार चीज देना सच्ची नेकी नहीं है।
आश्वासन: "और तुम जो कुछ भी खर्च करो, तो निश्चित रूप से अल्लाह उसको जानने वाला है।"
यह वाक्य हर दान देने वाले को सांत्वना और प्रोत्साहन देता है। अल्लाह हर छोटे-बड़े त्याग को जानता है, चाहे दुनिया उसे देखे या न देखे।
वह दान देने वाले के इरादे, उसकी क्षमता और उसके त्याग की वास्तविक कीमत को भी जानता है। इसलिए, इंसान को किसी के सामने दिखावा करने की जरूरत नहीं है।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
त्याग ही सच्ची नेकी की कसौटी है: ईमान की असली परीक्षा तब होती है जब इंसान अपनी प्रिय वस्तु अल्लाह की राह में अर्पित करता है।
दिल का लगाव छोड़ना: इस्लाम इंसान से उसके दिल के लगाव को अल्लाह के लिए छोड़ने को कहता है। यही "इस्लाम" (समर्पण) का असली मतलब है।
अल्लाह का ज्ञान: एक मोमिन को यह विश्वास रखना चाहिए कि उसका कोई भी अच्छा काम, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अल्लाह के यहाँ रिकॉर्ड हो रहा है और उसका पूरा बदला मिलेगा।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत सहाबा (साथियों) के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत थी। इसी सिद्धांत पर चलकर उन्होंने अपना सब कुछ - धन, घर, व्यापार - अल्लाह की राह में कुर्बान कर दिया। हज़रत अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और हज़रत उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अपनी आधी संपत्ति दान की।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:
दान की भावना: आज का मुसलमान अक्सर बची-खुची या अनचाही चीजें दान कर देता है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि असली सवाब तो अपनी पसंद की चीज देने में है।
समय और क्षमता का दान: दान सिर्फ पैसे का नहीं होता। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कीमती समय दान करना, अपना ज्ञान देना, या अपनी स्किल्स दूसरों की मदद के लिए इस्तेमाल करना भी इसी आयत के दायरे में आता है।
ईमान की जाँच: यह आयत हर मुसलमान से पूछती है कि क्या आप वाकई उस चीज को दान करने को तैयार हैं जिससे आपको सचमुच प्यार है?
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा "सच्चे त्याग और इखलास" की कसौटी बनी रहेगी। भविष्य में जब भी लोगों के पास संसाधनों की भरमार होगी, यह आयत उन्हें याद दिलाएगी कि अल्लाह की नज़दीकी पाने के लिए अपनी प्रिय वस्तुओं को अल्लाह के लिए छोड़ना होगा। यह आयत हर युग के मुसलमानों को उदारता और बलिदान की उच्च भावना अपनाने की प्रेरणा देती रहेगी।