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कुरआन की आयत 3:93 की पूरी व्याख्या

 

﴿كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ إِلَّا مَا حَرَّمَ إِسْرَائِيلُ عَلَىٰ نَفْسِهِ مِن قَبْلِ أَن تُنَزَّلَ التَّوْرَاةُ ۗ قُلْ فَأْتُوا بِالتَّوْرَاةِ فَاتْلُوهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 93)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ (Kullut-ta'aami kaana hillal-li-Banee Israa'eela): हर खाना बनी इस्राईल के लिए हलाल (वैध) था।

  • إِلَّا مَا حَرَّمَ إِسْرَائِيلُ عَلَىٰ نَفْسِهِ (Illaa maa harrama Israa'eelu 'alaa nafsihi): सिवाय उस चीज़ के जो इस्राईल (याकूब) ने अपने ऊपर हराम (वर्जित) कर ली थी।

  • مِن قَبْلِ أَن تُنَزَّلَ التَّوْرَاةُ (Min qabli an tunazzalat-Tawraatu): तौरात के उतरने से पहले।

  • قُلْ فَأْتُوا بِالتَّوْرَاةِ فَاتْلُوهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ (Qul faatoo bit-Tawraati fatloohaa in kuntum saadiqeen): (ऐ पैगंबर!) आप कह दें: "तो तौरात लेकर आओ और उसे पढ़कर सुनाओ, अगर तुम सच्चे हो।"


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत यहूदियों के एक झूठे दावे का खंडन करती है। वह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर यह आरोप लगाते थे कि आप कुछ ऐसे जानवर हलाल करते हैं जो तौरात में हराम थे। इस आयत में अल्लाह उनके इस आरोप का जवाब देते हुए ऐतिहासिक सच्चाई सामने रखता है।

आयत के तीन मुख्य बिंदु हैं:

  1. मूल नियम: "हर खाना बनी इस्राईल के लिए हलाल था": शुरुआत में, अल्लाह ने बनी इस्राईल (यहूदियों) के लिए सारे खाने को वैध (हलाल) कर दिया था। यानी कोई चीज़ स्वभाव से हराम नहीं थी।

  2. व्यक्तिगत प्रतिज्ञा: "सिवाय उस चीज़ के जो इस्राईल (याकूब) ने अपने ऊपर हराम कर ली थी": यहाँ "इस्राईल" हज़रत याकूब (अलैहिस्सलाम) का दूसरा नाम है। एक बीमारी से स्वस्थ होने के बाद, उन्होंने अल्लाह से एक मन्नत (प्रतिज्ञा) मानी कि वह अपने लिए ऊँट का मांस और दूध हराम कर लेंगे। यह उनकी "व्यक्तिगत" मन्नत थी, अल्लाह का कोई आदेश नहीं था। और यह प्रतिज्ञा "तौरात के उतरने से पहले" की थी।

  3. चुनौती: "तो तौरात लेकर आओ और उसे पढ़कर सुनाओ": अल्लाह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश देता है कि यहूदियों को चुनौती दें कि अगर वह सच्चे हैं कि यह हरामी तौरात में लिखी है, तो वह तौरात की किताब लेकर आएँ और वह आयत पढ़कर सुनाएँ। यहूदी ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि तौरात में ऐसा कोई आदेश नहीं था। उन्होंने हज़रत याकूब की व्यक्तिगत मन्नत को ही अल्लाह का आदेश बना दिया था।

सारांश: अल्लाह स्पष्ट करता है कि ऊँट आदि को हराम करना अल्लाह का हुक्म नहीं, बल्कि हज़रत याकूब की अपनी नज़र (प्रतिज्ञा) थी, और इस्लाम ने उन व्यक्तिगत पाबंदियों को खत्म करके चीजों को उनके मूल हलाल स्वरूप में लौटा दिया।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. धार्मिक स्रोतों में हेराफेरी का पर्दाफाश: लोग अक्सर अपनी मनमानी को धर्म का हिस्सा बना देते हैं। इस आयत से पता चलता है कि कैसे यहूदियों ने एक पैगंबर की निजी प्रतिज्ञा को अल्लाह का आदेश बता दिया।

  2. ज्ञान की कसौटी: इस्लाम बेवजह की बहस के बजाय, ज्ञान और सबूत पर बल देता है। "किताब लाकर दिखाओ" की चुनौती इसी का प्रतीक है।

  3. हलाल और हराम का अधिकार सिर्फ अल्लाह का: किसी चीज को हलाल या हराम करने का अधिकार सिर्फ अल्लाह के पास है। कोई इंसान, चाहे वह कितना ही बड़ा पैगंबर क्यों न हो, अपनी तरफ से किसी चीज को हराम नहीं ठहरा सकता।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत यहूदियों के झूठे आरोप का सटीक जवाब थी और उनकी धार्मिक मान्यताओं में हुई विकृतियों को उजागर करती थी।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • धार्मिक अतिरिक्तताएँ (Bid'ah): आज भी कई मुस्लिम समुदायों में ऐसी बातें प्रचलित हैं जो धर्म का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि किसी संत या विद्वान की व्यक्तिगत राय या प्रथा बनकर रह गई हैं। यह आयत ऐसी ही बिदअतों से सावधान करती है।

    • हलाल-हराम के मामले: यह आयत हमें यह समझाती है कि हलाल और हराम का फैसला केवल कुरआन और सहीह हदीस से ही लेना चाहिए, न कि किसी की व्यक्तिगत राय से।

    • सच्चाई की खोज: यह आयत हर इंसान को सिखाती है कि किसी भी धार्मिक दावे को बिना सबूत के स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि उसकी पुष्टि मूल स्रोतों से करनी चाहिए।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा "धार्मिक मान्यताओं की शुद्धता" के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बनी रहेगी। भविष्य में जब भी कोई समुदाय या व्यक्ति धर्म में अपनी तरफ से चीजों को जोड़ेगा या घटाएगा, यह आयत उसके खिलाफ एक स्थायी चेतावनी होगी। यह आयत हर युग के लोगों को यह याद दिलाती रहेगी कि धर्म का स्रोत केवल अल्लाह की वही (कुरआन) और उसके पैगंबर की सुन्नत है।