(1) पूरी आयत अरबी में:
"إِن تُبْدُوا خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُوا عَن سُوءٍ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
إِن (In): यदि।
تُبْدُوا (Tubdū): तुम प्रकट करो, ज़ाहिर करो।
خَيْرًا (Khayran): भलाई।
أَو (Aw): या।
تُخْفُوهُ (Tukhfūhu): तुम छिपाओ उसे।
أَو (Aw): या।
تَعْفُوا (Ta'fū): तुम माफ कर दो, दरगुज़र करो।
عَن (ʿAn): से।
سُوءٍ (Sū'in): बुराई, गलती।
فَإِنَّ (Fa-inna): तो निश्चित रूप से।
اللَّهَ (Allāha): अल्लाह।
كَانَ (Kāna): है (हमेशा से)।
عَفُوًّا (ʿAfuwwan): क्षमा करने वाला, दरगुज़र करने वाला।
قَدِيرًا (Qadīran): सामर्थ्यवान, हर चीज़ पर पूरी तरह सक्षम।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली आयत (4:148) का ही एक सुंदर और सकारात्मक विस्तार है। पिछली आयत में बुराई को public करने से मना किया गया था और मजलूम (पीड़ित) को अपना दर्द व्यक्त करने की इजाजत दी गई थी। अब यह आयत एक और ऊंचे दर्जे के आचरण की ओर ले जाती है – और वह है माफ करने और भलाई को छिपाने का।
आयत का भावार्थ: "यदि तुम कोई भलाई (सदका, अच्छा काम) खुले तौर पर करो या उसे छिपाकर करो, या किसी बुराई (तुम्हारे साथ हुए ज़ुल्म) को माफ कर दो, तो (याद रखो) निश्चित रूप से अल्लाह (भी) बड़ा माफ करने वाला, सामर्थ्यवान है।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत एक मोमिन के चरित्र के तीन उत्कृष्ट गुणों को प्रस्तुत करती है, जिनमें से हर एक के लिए अल्लाह की ओर से बड़ा इनाम है।
1. खैर (भलाई) को ज़ाहिर करना (इन तुब्दू खैरन):
कुछ अच्छे कामों को public करना भी जरूरी होता है ताकि दूसरों को प्रेरणा मिले, अच्छाई फैले और एक अच्छा सामाजिक माहौल बने। जैसे मस्जिद बनवाना, सामूहिक भलाई का काम करना।
2. खैर (भलाई) को छिपाकर करना (औ तुख्फूह):
यह भलाई का सबसे उत्तम रूप है। गुप्त दान करना, बिना बताए किसी की मदद करना। इससे इंसान के अंदर 'इख्लास' (शुद्धता) पैदा होती है और उसे 'रिया' (दिखावे) के पाप से बचाता है। अल्लाह के निकट यह अमल सबसे ज्यादा पसंदीदा है।
3. बुराई (ज़ुल्म) को माफ कर देना (औ तअफू 'अन सूइन):
यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण और उच्चतम संदेश है। पिछली आयत में मजलूम को शिकायत करने का अधिकार दिया गया था, लेकिन यहां उससे भी ऊपर उठकर माफ कर देने के गुण की शिक्षा दी जा रही है।
यह 'इंतकाम' (बदला) लेने से कहीं ज्यादा बड़ा और नेक काम है। यह इंसान की आत्मा की महानता को दर्शाता है।
अल्लाह की सिफात: "इन्नल्लाहा काना अफुव्वन क़दीरा"
अफुव्व (छमा करने वाला): अल्लाह अपने बंदों की गलतियों को बार-बार माफ करता है। जब अल्लाह स्वयं इतना माफ करने वाला है, तो उसके बंदों का भी यही गुण अपनाना उसकी पसंद का रास्ता है।
क़दीर (सामर्थ्यवान): अल्लाह बदला लेने पर भी पूरी तरह से सक्षम है, फिर भी वह माफ करता है। यही बात इंसान पर भी लागू होती है। अगर कोई व्यक्ति बदला लेने में सक्षम होते हुए भी माफ कर दे, तो यह अल्लाह को बेहद पसंद आता है। यह माफी उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत और महानता का प्रतीक है।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
भलाई हर हाल में करो: भलाई करने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए, चाहे उसे public करो या छिपाकर। लेकिन छिपाकर करना ज्यादा बेहतर है।
माफी एक महान विजय है: दूसरों की गलतियों और जुल्मों को माफ कर देना इंसानी चरित्र की सबसे बड़ी ऊंचाई है। यह दिल को हल्का करता है और अल्लाह की रहमत को आकर्षित करता है।
अल्लाह के गुणों पर चलना: एक मोमिन का लक्ष्य अल्लाह के गुणों को अपने जीवन में उतारना है। जिस तरह अल्लाह माफ करता है, उसी तरह हमें भी दूसरों को माफ करना सीखना चाहिए।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत प्रारंभिक मुस्लिम समाज को एक उच्च-स्तरीय नैतिक आचार संहिता प्रदान कर रही थी। इसने लोगों को दिखावे से बचने, गुप्त रूप से दान देने और अपने दुश्मनों को भी माफ करने की शिक्षा दी, जो उस कठिन समय में बहुत महत्वपूर्ण थी।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
सोशल मीडिया और दिखावा: आज हर कोई सोशल मीडिया पर अपने दान और अच्छे कामों का ढिंढोरा पीटता है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि असली भलाई वह है जो छिपकर की जाए। 'इन्फ्लुएंसर कल्चर' के इस दौर में यह संदेश बहुत जरूरी है।
क्रोध और बदले की संस्कृति: आज की दुनिया में लोग छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं और बदला लेने को तैयार बैठे रहते हैं। परिवारों और समाजों में रिश्ते टूट रहे हैं। इस आयत का संदेश "माफ कर दो" समाज में शांति और सद्भावना लाने का एक शक्तिशाली उपाय है।
मानसिक स्वास्थ्य: दूसरों को माफ करने और गुप्त रूप से भलाई करने से इंसान को गहरी आत्मिक शांति और संतुष्टि मिलती है, जो आज के तनाव भरे जीवन में एक बड़ी दवा है।
भविष्य (Future) में: जब तक इंसानी समाज रहेगा, दिखावे, क्रोध और टूटे रिश्तों की चुनौतियां बनी रहेंगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन बनी रहेगी। यह मानवता को यह सिखाती रहेगी कि "चाहे जैसे भी हो, भलाई करते रहो और दूसरों की बुराइयों को माफ करते रहो, क्योंकि तुम्हारा पालनहार भी माफ करने वाला और ताकतवर है।" यही वह सिद्धांत है जो भविष्य के समाज को अधिक दयालु और शांतिपूर्ण बना सकता है।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत एक मोमिन के लिए जीवन का एक संपूर्ण दर्शन प्रस्तुत करती है। यह सिखाती है कि भलाई करना हमारा स्वभाव होना चाहिए, चाहे वह public हो या private। और सबसे बढ़कर, यह हमें दूसरों की बुराइयों और जुल्मों को माफ करने की प्रेरणा देती है, क्योंकि यही वह गुण है जो हमें हमारे रब के सबसे नज़दीक ले जाता है। यह आयत नैतिक उत्कृष्टता की एक ऐसी ऊंचाई दिखाती है, जिसकी ओर हर इंसान को लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।