(1) पूरी आयत अरबी में:
"وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّورَ بِمِيثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوا فِي السَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
وَرَفَعْنَا (Wa Rafa'nā): और हमने उठाया।
فَوْقَهُمُ (Fawqahumu): उनके ऊपर।
الطُّورَ (At-Tūra): तूर पहाड़।
بِمِيثَاقِهِمْ (Bi-Mīthāqihim): उनके अहद (वचन/समझौते) के कारण।
وَقُلْنَا (Wa Qulnā): और हमने कहा।
لَهُمُ (Lahumu): उनसे।
ادْخُلُوا (Udhulū): दाखिल हो जाओ।
الْبَابَ (Al-Bāba): दरवाजे में।
سُجَّدًا (Sujjadan): सजदे की हालत में (झुककर)।
وَقُلْنَا (Wa Qulnā): और हमने कहा।
لَهُمْ (Lahum): उनसे।
لَا تَعْدُوا (Lā Ta'dū): सीमा मत लांघो।
فِي (Fī): में।
السَّبْتِ (As-Sabti): सब्त (शनिवार) के दिन।
وَأَخَذْنَا (Wa Akhadhnā): और हमने लिया।
مِنْهُم (Minhum): उनसे।
مِّيثَاقًا (Mīthāqan): एक मजबूत वचन/समझौता।
غَلِيظًا (Ghalīthan): सख्त, मजबूत।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली आयतों में चल रहे बनी इसराईल (इस्राएल की संतान) के इतिहास का सिलसिला जारी रखती है। यह उन विशेष अनुग्रहों (इनामात) और सख्त निर्देशों का वर्णन करती है जो अल्लाह ने उन्हें दिए थे, लेकिन बाद में उन्होंने उनका उल्लंघन किया। यह इस बात का प्रमाण है कि अल्लाह ने उन्हें हर प्रकार का मार्गदर्शन दिया था।
आयत का भावार्थ: "और हमने उनके वचन (अनुशासन में रहने का) लेने के लिए उनके सिर पर 'तूर' पहाड़ उठा लिया था, और हमने उनसे कहा: "इस (शहर के) दरवाजे में सजदे की हालत में (विनम्रता से) दाखिल हो जाओ", और हमने उनसे कहा: "सब्त (शनिवार) के दिन (निषिद्ध शिकार के) मामले में सीमा मत लांघो", और हमने उनसे एक अत्यंत मजबूत वचन (तौरात पर अमल करने का) लिया।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत बनी इसराईल पर अल्लाह के तीन बड़े अनुग्रह और आदेशों का जिक्र करती है:
1. पहाड़ का उठाया जाना (व रफअना फौकहुमुत-तूर बि-मीसाकिहिम):
जब अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्सलाम) के माध्यम से तौरात अवतरित की, तो बनी इसराईल ने उसकी बातों को हल्के में लिया और उस पर पूरी तरह अमल करने में ढील दिखाई।
इस पर अल्लाह ने पूरा 'तूर' पहाड़ उनके सिर के ऊपर इस तरह उठा लिया मानो वह गिरने वाला है। यह एक डरावनी निशानी थी ताकि वह अल्लाह के आदेशों को गंभीरता से लें और उसके प्रति पूरी वफादारी का वचन (मीसाक) दें। इस घटना ने दिखाया कि ईमान लाने के बाद अल्लाह के आदेशों से मुंह मोड़ना कितना खतरनाक है।
2. सजदे की हालत में दरवाजे में दाखिल होने का आदेश (व कुलना लहुमुद्खुलुल बाबा सुज्जदा):
जब बनी इसराईल को अल्लाह ने फिलिस्तीन (बैतुल मुक़द्दस) में प्रवेश करने का आदेश दिया, तो उनसे कहा गया कि शहर के दरवाजे में अत्यंत विनम्रता के साथ, सजदे की स्थिति में (झुककर) प्रवेश करें।
यह आदेश उनकी विनम्रता, अल्लाह के प्रति कृतज्ञता और आज्ञाकारिता की परीक्षा थी। दुर्भाग्य से, उन्होंने इस आदेश का पालन नहीं किया और घमंड के साथ दरवाजे में घुस गए।
3. सब्त (शनिवार) की हदूद का पालन (व कुलना लहुम ला तअदू फिस-सब्ति):
अल्लाह ने उन पर शनिवार का दिन पवित्र रखने का आदेश दिया था और उस दिन समुद्र में मछली पकड़ने पर पाबंदी लगा दी थी (क्योंकि मछलियां उस दिन अधिक संख्या में आती थीं)। यह उनकी आज्ञापालन की परीक्षा थी।
उन्होंने इस आदेश के साथ धोखा किया और हल्के-फुल्के बहाने बनाकर शनिवार के दिन भी मछली पकड़ने लगे। इसी जुल्म (सीमा उल्लंघन) के कारण अल्लाह ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया था।
4. मजबूत वचन (व अखजना मिनहुम मीसाकन गलीजा):
इन सब घटनाओं के बाद, अल्लाह ने उनसे एक बहुत ही सख्त और मजबूत वचन (समझौता) लिया कि वह तौरात की शिक्षाओं का पालन करेंगे और अल्लाह के आदेशों को नहीं तोड़ेंगे। लेकिन उन्होंने इस सख्त वचन को भी तोड़ दिया।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
अल्लाह के आदेशों की गंभीरता: अल्लाह के दिए हुए आदेशों और सीमाओं (हदूद) को गंभीरता से लेना चाहिए। उनके साथ खिलवाड़ या उल्लंघन का परिणाम बहुत भयानक हो सकता है।
विनम्रता का महत्व: अल्लाह की नेमतों और जीत के बाद इंसान को घमंड नहीं, बल्कि और अधिक विनम्र और आभारी होना चाहिए।
परीक्षा की प्रकृति: अल्लाह अक्सर इंसान की आज्ञाकारिता की छोटी-छोटी चीजों से परीक्षा लेता है। सब्त के दिन मछली पकड़ने की मनाही इसी तरह की एक परीक्षा थी।
वचनबद्धता: अल्लाह के साथ किया गया वचन (ईमान का अकीदा, नमाज, रोजा आदि) एक पवित्र समझौता है, जिसे पूरी ईमानदारी से निभाना चाहिए।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय के यहूदियों को उनके अपने इतिहास का स्मरण कराती थी और दिखाती थी कि उनके पूर्वजों ने अल्लाह के इतने अनुग्रहों के बावजूद कितनी बार अवज्ञा की।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत हर मुसलमान के लिए एक दर्पण का काम करती है।
धार्मिक आदेशों के साथ समझौता: आज कई मुसलमान धार्मिक आदेशों के साथ समझौता करते हैं। वह कहते हैं, "नमाज़ जरूरी है, लेकिन व्यवसाय के चलते नहीं पढ़ सकते," या "हिजाब जरूरी है, लेकिन सोशल प्रेशर के कारण नहीं कर सकते।" यह ठीक वैसा ही है जैसे सब्त के दिन मछली पकड़ने के बहाने बनाना।
विनम्रता का अभाव: आज इंसान जब कामयाबी हासिल करता है, तो वह अल्लाह का शुक्र अदा करने के बजाय अपनी काबिलियत पर घमंड करने लगता है। यह आयत हमें सिखाती है कि हर सफलता के बाद अल्लाह के सामने विनम्रता (सजदा) जरूरी है।
ईमान की जिम्मेदारी: हमने भी अल्लाह के साथ एक "मीसाके गलीज" (मजबूत वचन) लिया है कि हम उसकी इबादत करेंगे और उसके हुक्मों का पालन करेंगे। यह आयत हमें इस वचन को याद दिलाती है और इसे तोड़ने वालों के बुरे अंजाम से सावधान करती है।
भविष्य (Future) में: जब तक इंसान रहेगा, वह अल्लाह के आदेशों के प्रति लापरवाही और उनके साथ समझौता करने की प्रवृत्ति रखेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी कि अल्लाह की नेमतें उसकी आज्ञाकारिता की मांग करती हैं। यह हमें सिखाती रहेगी कि विनम्रता, आज्ञापालन और वचनबद्धता ही सच्ची सफलता की कुंजी है, न कि उल्लंघन और धोखा।
निष्कर्ष: यह आयत हमें बताती है कि अल्लाह ने बनी इसराईल को उनकी जिद के कारण डरावनी निशानी दिखाई, उनकी विनम्रता की परीक्षा ली और उन्हें छोटी-छोटी परीक्षाओं में डाला, लेकिन उन्होंने हर मोड़ पर अवज्ञा ही की। यह इतिहास हम मुसलमानों के लिए एक सबक है ताकि हम अल्लाह के आदेशों का पालन करें, उसकी नेमतों पर घमंड न करें और उसके साथ किए गए अपने वचन (ईमान) को मजबूती से थामें रहें।