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कुरआन की आयत 4:159 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"وَإِن مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Water Meaning):

  • وَإِن (Wa-in): और निश्चित रूप से।

  • مِّن (Min): में से।

  • أَهْلِ (Ahl-i): लोग।

  • الْكِتَابِ (Al-Kitāb-i): किताब (के, यानू ईसाई)।

  • إِلَّا (Illā): कोई भी (इसके अलावा) नहीं।

  • لَيُؤْمِنَنَّ (La-yu'minanna): अवश्य ही ईमान ले आएगा।

  • بِهِ (Bihī): उस (ईसा) पर।

  • قَبْلَ (Qabla): पहले।

  • مَوْتِهِ (Mawtihī): उसकी मौत के।

  • وَيَوْمَ (Wa-yawma): और जिस दिन।

  • الْقِيَامَةِ (Al-Qiyāmati): क़यामत।

  • يَكُونُ (Yakūnu): होगा।

  • عَلَيْهِمْ (Alayhim): उन पर।

  • شَهِيدًا (Shahīdan): गवाह।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बारे में इस तीन-आयतों (157-159) के सिलसिले का अंतिम और निर्णायक बिंदु है। यह भविष्य की एक महान घटना की ओर इशारा करती है जो हज़रत ईसा के असली मिशन की पुष्टि करेगी।

आयत का भावार्थ: "और अहले-किताब (यहूदी और ईसाई) में से कोई भी ऐसा नहीं है, बल्कि उसकी मौत से पहले उस (ईसा) पर अवश्य ईमान ले आएगा। और क़यामत के दिन वह (ईसा) उन पर गवाह होंगे।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत दो भागों में एक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी करती है, जिसकी व्याख्या में विद्वानों के दो प्रमुख मत हैं। दोनों ही मत महत्वपूर्ण हैं।

भाग 1: "इन मिन अहलिल किताब इल्ला ल यु'मिनन्ना बिही कबला मौतिहि"

  • "मौतिहि" (उसकी मौत) में "उस" का संदर्भ: यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि "उसकी मौत" से तात्पर्य किसकी मौत से है? इसके दो प्रमुख अर्थ हैं:

    1. पहला और प्रचलित अर्थ (हर अहले-किताब की अपनी मौत से पहले): इस व्याख्या के अनुसार, कयामत से पहले, हर यहूदी और ईसाई अपनी अपनी मृत्यु से पहले हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की सच्चाई पर ईमान ले आएगा। यह ईमान मृत्यु के समय होगा, जब सच्चाई स्पष्ट हो जाएगी। यह एक सामान्य सिद्धांत है कि मृत्यु के समय हर इंसान के सामने सत्य प्रकट हो जाता है, भले ही वह उसे स्वीकार करे या न करे।

    2. दूसरा और विशिष्ट अर्थ (हज़रत ईसा की मौत से पहले): यह व्याख्या हदीसों से मिलने वाली जानकारी पर आधारित है। इसके अनुसार, "उसकी मौत" से तात्पर्य हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की मौत से है।

    • जब हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) दुनिया में वापस आएंगे, तो वह इस्लाम की दावत देंगे और तौरात और इंजील को नहीं, बल्कि कुरआन और शरीयत-ए-मुहम्मदी के अनुसार फैसला करेंगे।

    • उस समय, सारे यहूदी और ईसाई उन पर ईमान ले आएंगे, क्योंकि वह जीवित होंगे और उनका चमत्कार देखकर कोई भी इनकार नहीं कर पाएगा।

    • इसके बाद, हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) एक सामान्य मनुष्य की तरह निधन को प्राप्त होंगे। तो, उनकी मौत से पहले सभी अहले-किताब उन पर सच्चा ईमान ले आएंगे।

भाग 2: "व यौमल क़ियामति यकूनु अलैहिम शहीदा"

  • इस भाग का अर्थ स्पष्ट और निर्विवाद है। कयामत के दिन, हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) अहले-किताब (यहूदियों और ईसाइयों) के खिलाफ एक गवाह (शहीद) के रूप में खड़े होंगे।

  • वह गवाही देंगे कि उन्होंने अल्लाह की इबादत की शिक्षा दी थी, लेकिन लोगों ने उन्हें अल्लाह का बेटा बना दिया। वह यह भी गवाही देंगे कि उन्होंने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की खुशखबरी दी थी।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. सत्य की अंतिम विजय: यह आयत हमें बताती है कि आखिरकार सच्चाई ही जीतेगी। भले ही लोग सदियों तक गलतफहमी में जीएं, लेकिन एक दिन हर किसी के सामने सच स्पष्ट हो जाएगा।

  2. हज़रत ईसा का महत्वपूर्ण स्थान: हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के व्यक्तित्व और मिशन को अल्लाह ने बहुत महत्व दिया है। वह न केवल अतीत के पैगम्बर हैं, बल्कि भविष्य की महान घटनाओं में उनकी एक केंद्रीय भूमिका है।

  3. जिम्मेदारी का एहसास: कयामत के दिन हर पैगम्बर अपनी-अपनी उम्मत के बारे में गवाही देगा। यह बात हमें हमारे कर्मों की जिम्मेदारी का एहसास कराती है।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत प्रारंभिक मुसलमानों को यहूदियों और ईसाइयों के साथ बहस में एक दृढ़ तर्क देती थी। यह दिखाती थी कि भविष्य में उनके अपने पैगम्बर (ईसा) ही उनके खिलाफ गवाही देंगे।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • अंतर-धार्मिक संवाद: यह आयत ईसाइयों के लिए एक सीधा संदेश है कि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की वापसी और उनकी असली शिक्षाओं के बारे में इस्लाम का दृष्टिकोण स्पष्ट है। यह संवाद के लिए एक आधार प्रदान करती है।

    • भविष्य की आशा: आज की अशांत दुनिया में, हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की वापसी और उनके हाथों इस्लाम की विजय की भविष्यवाणी मुसलमानों के लिए आशा और ईमान की ताकत का स्रोत है।

    • मृत्यु की हकीकत: पहली व्याख्या के अनुसार, यह आयत हर इंसान को याद दिलाती है कि मृत्यु के समय सारे भ्रम दूर हो जाते हैं और सच्चाई सामने आ जाती है। इसलिए, समय रहते सही रास्ते पर आ जाना चाहिए।

  • भविष्य (Future) में: यह आयत कयामत तक मुसलमानों के लिए एक स्थायी विश्वास और प्रतीक्षा का विषय बनी रहेगी। यह भविष्य की उस महान घटना की ओर इशारा करती है जब हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) दुनिया में लौटेंगे और सारा सच सामने आ जाएगा। यह आयत हमेशा यह संदेश देती रहेगी कि अल्लाह का दीन ही अंतिम विजेता होगा और हर इंसान को एक दिन सत्य को स्वीकार करना ही होगा।

निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बारे में इस्लामी विश्वास के एक महत्वपूर्ण पहलू को पूरा करती है। यह न केवल अतीत के एक झूठे दावे का खंडन करती है, बल्कि भविष्य की एक निर्णायक घटना की ओर भी इशारा करती है। यह आयत हमें सिखाती है कि सत्य अमर है और एक दिन पूरी मानवजाति के सामने प्रकट होकर रहेगा। हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की भूमिका इस सत्य को प्रकट करने में अंतिम और निर्णायक साबित होगी।