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कुरआन की आयत 4:160 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"فَبِظُلْمٍ مِّنَ الَّذِينَ هَادُوا حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَاتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَن سَبِيلِ اللَّهِ كَثِيرًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):

  • فَبِظُلْمٍ (Fa-bi-zulmin): तो उनके अत्याचार (जुल्म) के कारण।

  • مِّنَ (Mina): में से।

  • الَّذِينَ (Alladhīna): जो लोग।

  • هَادُوا (Hādū): यहूदी हो गए।

  • حَرَّمْنَا (Ḥarramnā): हमने हराम (वर्जित) कर दिया।

  • عَلَيْهِمْ (Alayhim): उन पर।

  • طَيِّبَاتٍ (Ṭayyibātin): पवित्र/अच्छी चीजें।

  • أُحِلَّتْ (Uḥillat): हलाल (वैध) की गई थीं।

  • لَهُمْ (Lahum): उनके लिए।

  • وَبِصَدِّهِمْ (Wa-bi-ṣaddihim): और उनके रोकने के कारण।

  • عَن (ʿAn): से।

  • سَبِيلِ (Sabīli): मार्ग।

  • اللَّهِ (Allāhi): अल्लाह के।

  • كَثِيرًا (Kathīran): बहुत से (लोगों को)।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत बनी इसराईल के इतिहास पर चल राली चर्चा का अगला चरण है। पिछली आयतों में उनके गंभीर धार्मिक पापों (वचन तोड़ना, पैगम्बरों की हत्या आदि) का जिक्र था। अब यह आयत बताती है कि इन पापों के परिणामस्वरूप अल्लाह ने उन पर कुछ दुनियावी प्रतिबंध भी लगा दिए।

आयत का भावार्थ: "तो उन लोगों के जुल्म (अवज्ञा) के कारण जो यहूदी हो गए, हमने उन पर वे पवित्र और अच्छी चीजें हराम कर दीं जो (पहले) उनके लिए हलाल की गई थीं। और (यह सजा भी) उनके इस कारण (मिली) कि वे लोगों को अल्लाह के मार्ग से बहुत रोकते थे।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करती है: इंसान की अवज्ञा और पाप ही उसके लिए रहमतों के दरवाजे बंद करने का कारण बनते हैं।

  • "ज़ुल्म" (अत्याचार) का अर्थ: यहाँ 'ज़ुल्म' का मतलब सिर्फ शारीरिक अत्याचार नहीं है, बल्कि वह सारे पाप हैं जिनका जिक्र पिछली आयतों में हुआ था – अहद (वचन) तोड़ना, कुफ्र करना, पैगम्बरों को मारना, बुहतान (झूठा इल्ज़ाम) लगाना आदि। यह अल्लाह के अधिकारों और हुक्मों के साथ किया गया अत्याचार था।

  • कौन सी "तय्यिबात" (पवित्र चीजें) हराम की गईं?

    • तौरात के कुछ नियमों के अनुसार, यहूदियों पर कुछ विशेष प्रकार के जानवरों का मांस, चर्बी आदि हराम कर दिए गए थे। ये प्रतिबंध उनकी सजा और परीक्षा दोनों के लिए थे।

    • मुख्य बात यह है कि ये चीजें मूल रूप से 'तय्यिबात' (पवित्र और अच्छी) थीं, लेकिन उनके अपने ही कर्मों के कारण उन पर प्रतिबंध लग गया।

  • दोहरा अपराध:

    1. अपनी अवज्ञा: उन्होंने खुद अल्लाह के आदेशों का उल्लंघन किया।

    2. दूसरों को रोकना: उन्होंने दूसरे लोगों को भी अल्लाह के रास्ते से रोका। वह लोगों को सच्चाई अपनाने से, पैगम्बरों पर ईमान लाने से रोकते थे। यह उनका एक बहुत बड़ा पाप था।

  • सजा का स्वरूप: अल्लाह की सजा ने उनके दैनिक जीवन को प्रभावित किया। उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कुछ हलाल और अच्छी चीजें उन पर हराम कर दी गईं। यह दिखाता है कि पापों का असर सिर्फ आध्यात्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि भौतिक और सामाजिक स्तर पर भी होता है।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. पापों के दुष्परिणाम: इंसान के पाप और अवज्ञा उसके लिए अल्लाह की रहमतों और नेमतों को कम कर देते हैं। एक समय जो चीजें हलाल और आसान थीं, वही मुहाल हो सकती हैं।

  2. दूसरों को गुमराह करना बड़ा पाप: सिर्फ खुद गुनाह करना ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी सही रास्ते से रोकना एक भारी जुर्म है जिसकी सजा बहुत कठोर है।

  3. अल्लाह के नियम में परिवर्तन: अल्लाह के धार्मिक नियम (शरीयत) अलग-अलग समय और लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। जो चीजें पहले की कौमों पर हराम थीं, वह हम पर हलाल की गई हैं (जैसे कुछ जानवरों का मांस)।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत यहूदियों को उनकी सजा का कारण समझाती थी और दिखाती थी कि उन पर लगे प्रतिबंध उनके अपने ही कर्मों का नतीजा हैं।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • व्यक्तिगत स्तर पर: आज हम देखते हैं कि जब इंसान गुनाहों में डूब जाता है, तो अल्लाह उसकी रोज़ी और जीवन में बरकत कम कर देता है। तनाव, बीमारी और आर्थिक मुश्किलें अक्सर हमारे अपने ही कर्मों का नतीजा होती हैं।

    • समाज के स्तर पर: जब कोई समाज सामूहिक रूप से अल्लाह की अवज्ञा करता है (ब्याज, अश्लीलता, अन्याय आदि को बढ़ावा देकर), तो अल्लाह की सामूहिक सजा आती है – बाढ़, सूखा, महामारी, आर्थिक मंदी आदि। ये सब "तय्यिबात" (अच्छी चीजों) के गायब होने के आधुनिक रूप हैं।

    • गुमराह करने की जिम्मेदारी: आज मीडिया, फिल्मों और इंटरनेट के माध्यम से लोगों को गुमराह करना, बुराई फैलाना और सच्चे धर्म से दूर करना एक आम बात है। यह आयत ऐसे सभी लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी है।

  • भविष्य (Future) में: जब तक इंसान रहेगा, उसके पाप और अवज्ञा के कारण उसकी ज़िंदगी की "तय्यिबात" (अच्छाइयाँ और बरकत) छिनती रहेगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी कि अल्लाह की नेमतों को बनाए रखने का तरीका उसकी आज्ञापालन और उसके रास्ते से लोगों को रोकने से बचना है। यह हमें सिखाती रहेगी कि हमारे कर्म ही हमारी किस्मत तय करते हैं।

निष्कर्ष: यह आयत हमें कर्म और परिणाम के सार्वभौमिक नियम से अवगत कराती है। यह स्पष्ट करती है कि मनुष्य अपने अत्याचार और दूसरों को सत्य से रोकने के कारण ही अपने लिए अल्लाह की नेमतों के दरवाजे बंद करता है। बनी इसराईल का इतिहास हमारे लिए एक चेतावनी है कि हम अपने जीवन की "तय्यिबात" (पवित्र नेमतों) को अपने गुनाहों के कारण न खोएं और न ही दूसरों को अल्लाह के रास्ते से रोकें। केवल आज्ञापालन और दूसरों का मार्गदर्शन करने में ही हमारी सफलता है।