(1) पूरी आयत अरबी में:
"وَأَخْذِهِمُ الرِّبَا وَقَدْ نُهُوا عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ ۚ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
وَأَخْذِهِمُ (Wa Akhdhihim): और उनके लेने के कारण।
الرِّبَا (Ar-Ribā): सूद (ब्याज) को।
وَقَدْ (Wa Qad): और यद्यपि।
نُهُوا (Nuhū): उन्हें मना किया गया था।
عَنْهُ (Anhu): उससे।
وَأَكْلِهِمْ (Wa Aklihim): और उनके खाने (हड़पने) के कारण।
أَمْوَالَ (Amwāla): माल को।
النَّاسِ (An-Nāsi): लोगों के।
بِالْبَاطِلِ (Bil-Bāṭili): बे-हक, गलत तरीके से।
وَأَعْتَدْنَا (Wa A’tadnā): और हमने तैयार कर रखा है।
لِلْكَافِرِينَ (Lil-Kāfirīna): काफिरों के लिए।
مِنْهُمْ (Minhum): उनमें से।
عَذَابًا (Adhāban): यातना।
أَلِيمًا (Alīman): दर्दनाक।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत बनी इसराईल के पापों की सूची में दो और गंभीर आर्थिक और सामाजिक अपराधों को जोड़ती है। यह दिखाती है कि उनकी अवज्ञा सिर्फ धार्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने आर्थिक अन्याय और शोषण को भी अपना लिया था।
आयत का भावार्थ: "और (उन पर प्रकोप) उनके सूद (ब्याज) लेने के कारण (हुआ), यद्यपि उन्हें उससे मना किया गया था, और लोगों के माल नाहक़ हड़पने के कारण। और हमने उनमें से काफिर लोगों के लिए दर्दनाक यातना तैयार कर रखी है।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत बनी इसराईल के तीन प्रमुख आर्थिक और नैतिक अपराधों को उजागर करती है:
1. रिबा (सूद/ब्याज) लेना – "वा अख्ज़िहिमुर रिबा"
मनाही के बावजूद: यहूदियों पर तौरात में भी सूद लेना हराम किया गया था, लेकिन उन्होंने इस प्रतिबंध को तोड़ दिया। उन्होंने अपने ही धर्म के हुक्म के खिलाफ जाकर सूद का लेन-देन शुरू कर दिया।
छल-कपट: उन्होंने सूद लेने के लिए तरह-तरह के हलाल के बहाने ढूंढे और लोगों का गलत फायदा उठाया।
2. लोगों के माल नाहक़ हड़पना – "वा अक्लिहिम अम्वालन नासि बिल बातिल"
यह एक बहुत ही व्यापक अपराध है जिसमें कई चीजें शामिल हैं:
जुआ: सट्टेबाजी और जुए के द्वारा दूसरों का पैसा हड़पना।
धोखाधड़ी: व्यापार और लेन-देन में ठगी करना।
रिश्वतखोरी: गलत तरीके से पैसा कमाना।
चोरी और डकैती: सीधे तौर पर दूसरे का माल लूटना।
"बिल-बातिल" का मतलब है हर वह गलत और अनुचित तरीका जिससे दूसरे का माल हड़प लिया जाए।
3. इनकार और अवज्ञा – "वा अ'तदना लिल काफिरीना मिनहुम..."
आयत स्पष्ट करती है कि ये सारे काम उनके कुफ्र (इनकार और अवज्ञा) का ही नतीजा थे। जब इंसान का अल्लाह से रिश्ता कमजोर हो जाता है, तो वह दूसरे इंसानों के हक़ भी मारने लगता है।
इसका परिणाम है "अज़ाबुन अलीम" – एक दर्दनाक सजा, जो न सिर्फ दुनिया में बल्कि आखिरत में भी भुगतनी पड़ेगी।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
रिबा (ब्याज) एक गंभीर पाप है: इस आयत से स्पष्ट है कि रिबा केवल इस्लाम में ही नहीं, बल्कि पिछले धर्मों में भी हराम था। यह एक ऐसा पाप है जो अल्लाह के गुस्से को भड़काता है।
दूसरों के हक़ न मारें: किसी का माल बे-हक हड़पना, चाहे वह धोखे से हो या जबरदस्ती से, एक बहुत बड़ा अत्याचार (ज़ुल्म) है।
ईमान और आर्थिक नैतिकता: सच्चा ईमान सिर्फ इबादत तक सीमित नहीं है। यह हमारे व्यापार, लेन-देन और आर्थिक व्यवहार में भी ईमानदारी की मांग करता है।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत यहूदियों की आर्थिक बुराइयों को उजागर करती थी और मुसलमानों को इन गंभीर पापों से बचने की शिक्षा देती थी।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है।
वैश्विक ब्याज व्यवस्था: आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ब्याज (रिबा) पर आधारित है। बैंक, बीमा कंपनियां, क्रेडिट कार्ड – सभी रिबा से चलते हैं। यह आयत हर उस मुसलमान के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है जो इन प्रणालियों में शामिल है या उनका फायदा उठाता है।
आर्थिक शोषण: आज भी लोगों के माल "बिल-बातिल" (गलत तरीके से) हड़पे जा रहे हैं। करोड़ों लोग सट्टेबाजी (Stock Market, Crypto), जुआ (लॉटरी, सट्टा), और धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं।
इस्लामिक बैंकिंग का आधार: यह आयत इस्लामिक बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता और महत्व को रेखांकित करती है, जो ब्याज से मुक्त है।
भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया रहेगी, आर्थिक अन्याय और शोषण एक बड़ी चुनौती बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत बनी रहेगी कि ईमानदार आजीविका और ब्याज-मुक्त अर्थव्यवस्था ही अल्लाह की रहमत और सफलता का रास्ता है। यह हमें सिखाती रहेगी कि दूसरों का माल हड़पना और सूद खाना, अल्लाह की नजर में एक घोर अपराध है जिसकी सजा बहुत दर्दनाक है।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत हमें आर्थिक पवित्रता का पाठ पढ़ाती है। यह स्पष्ट करती है कि धार्मिकता सिर्फ मस्जिद तक सीमित नहीं है, बल्कि बाजार और हमारे वित्तीय लेन-देन तक फैली हुई है। बनी इसराईल का इतिहास हमें चेतावनी देता है कि ब्याज लेना और लोगों का माल हड़पना अल्लाह के गुस्से को भड़काने वाले काम हैं। एक मुसलमान का फर्ज है कि वह इन गंभीर पापों से बचे और एक ईमानदार और न्यायपूर्ण आर्थिक जीवन व्यतीत करे।