(1) पूरी आयत अरबी में:
"إِنَّا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ كَمَا أَوْحَيْنَا إِلَىٰ نُوحٍ وَالنَّبِيِّينَ مِن بَعْدِهِ ۚ وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَارُونَ وَسُلَيْمَانَ ۚ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
إِنَّا (Innā): निश्चित रूप से हमने।
أَوْحَيْنَا (Awḥaynā): वह्यी (इलहाम/प्रकाशना) की।
إِلَيْكَ (Ilayka): आपकी ओर।
كَمَا (Kamā): जैसे कि।
أَوْحَيْنَا (Awḥaynā): हमने वह्यी की थी।
إِلَىٰ (Ilā): की ओर।
نُوحٍ (Nūḥin): नूह (अलैहिस्सलाम) की।
وَالنَّبِيِّينَ (Wan-Nabiyyīna): और पैगम्बरों की।
مِن بَعْدِهِ (Min Baʿdihī): उनके बाद।
وَأَوْحَيْنَا (Wa Awḥaynā): और हमने वह्यी की।
إِلَىٰ (Ilā): की ओर।
إِبْرَاهِيمَ (Ibrāhīma): इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की।
وَإِسْمَاعِيلَ (Wa Ismāʿīla): और इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की।
وَإِسْحَاقَ (Wa Isḥāqa): और इस्हाक (अलैहिस्सलाम) की।
وَيَعْقُوبَ (Wa Yaʿqūba): और याकूब (अलैहिस्सलाम) की।
وَالْأَسْبَاطِ (Wal-Asbāṭi): और अस्बात (याकूब की संतान/गोत्र) की।
وَعِيسَىٰ (Wa ʿĪsā): और ईसा (अलैहिस्सलाम) की।
وَأَيُّوبَ (Wa Ayyūba): और अय्यूब (अलैहिस्सलाम) की।
وَيُونُسَ (Wa Yūnusa): और यूनुस (अलैहिस्सलाम) की।
وَهَارُونَ (Wa Hārūna): और हारून (अलैहिस्सलाम) की।
وَسُلَيْمَانَ (Wa Sulaymāna): और सुलैमान (अलैहिस्सलाम) की।
وَآتَيْنَا (Wa Ātaynā): और हमने दिया।
دَاوُودَ (Dāwūda): दाऊद (अलैहिस्सलाम) को।
زَبُورًا (Zabūran): ज़बूर (नामक किताब)।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के रिसालत (पैगम्बरी) के सार्वभौमिक और ऐतिहासिक सिलसिले को स्थापित करती है। यह उन लोगों के लिए एक स्पष्ट जवाब है जो यह सोच सकते थे कि आप एक नए दीन लेकर आए हैं। यह आयत बताती है कि आपका दीन कोई नई चीज़ नहीं, बल्कि उसी एक सत्य दीन की अंतिम कड़ी है जो आदि काल से चला आ रहा है।
आयत का भावार्थ: "निश्चित रूप से हमने आपकी ओर वह्यी (प्रकाशना) भेजी है, जैसे कि हमने नूह और उनके बाद के पैगम्बरों की ओर वह्यी भेजी थी। और हमने इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक, याकूब, (याकूब की) संतानों, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान की ओर वह्यी भेजी। और हमने दाऊद को ज़बूर प्रदान की।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत इस्लाम के एक मौलिक सिद्धांत – रिसालत की निरंतरता और एकता – को प्रमाणित करती है।
"इन्ना औहैना इलैका कमा औहैना..." - इस वाक्यांश का महत्व:
अल्लाह पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहता है कि उनकी ओर वह्यी भेजने का तरीका और स्रोत वही है जो पिछले सभी पैगम्बरों के लिए था।
यह पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन की पुष्टि और गरिमा को बढ़ाता है। वह किसी नए धर्म के संस्थापक नहीं, बल्कि अल्लाह के अंतिम और सार्वभौमिक पैगम्बर हैं।
पैगम्बरों की सूची का महत्व:
इस सूची में विभिन्न काल और स्थानों के पैगम्बर शामिल हैं, जो दर्शाता है कि अल्लाह की रहमत हर जगह और हर युग में मानवजाति के लिए उपलब्ध रही है।
नूह: मानवता के दूसरे पिता, जिन्होंने एक महान संकट के बाद दुनिया को फिर से बसाया।
इब्राहीम और उनके परिवार: इस्लामी परंपरा के मूल पुरुष। इब्राहीम, इस्माईल और इस्हाक – तीनों ही पैगम्बर थे।
अस्बात: यह याकूब (अलैहिस्सलाम) के बारह बेटों और उनकी संतानों (जिनमें से कई पैगम्बर हुए) को संदर्भित करता है।
ईसा: जिनका जिक्र पिछली आयतों में विस्तार से हुआ था।
अय्यूब: धैर्य की मिसाल।
यूनुस: जिनकी कौम ने तौबा की।
हारून और सुलैमान: जो मूसा (अलैहिस्सलाम) के भाई और एक महान राजा व पैगम्बर थे।
दाऊद और ज़बूर: दाऊद (अलैहिस्सलाम) को ज़बूर (भजनों की पुस्तक) दी गई थी।
एकता का संदेश: यह सूची इस बात पर जोर देती है कि सभी पैगम्बर एक ही स्रोत (अल्लाह) से आए, एक ही मूल संदेश (अल्लाह की एकता और आज्ञापालन) लेकर आए, और एक ही उद्देश्य (मानवजाति का मार्गदर्शन) के लिए भेजे गए।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सत्यता: आपका दावा कोई नया नहीं है, बल्कि एक लंबी और सम्मानित पैगम्बरी परंपरा की पुष्टि है।
सभी पैगम्बरों पर ईमान: एक मुसलमान का यह कर्तव्य है कि वह इस सूची में उल्लेखित और अन्य सभी पैगम्बरों पर बिना किसी भेदभाव के ईमान रखे।
दीन की एकता: इस्लाम का अर्थ है सभी पैगम्बरों द्वारा लाए गए मूल एकेश्वरवादी धर्म के प्रति समर्पण। यह एक नया धर्म नहीं, बल्कि उसी सनातन सत्य की पूर्ण और अंतिम अभिव्यक्ति है।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत अहले-किताब (यहूदियों और ईसाइयों) के लिए एक तार्किक आधार प्रस्तुत करती थी। यह उनसे कहती थी कि जिस तरह तुम नूह, इब्राहीम, मूसा और ईसा पर ईमान रखते हो, उसी तरह मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी ईमान लाओ, क्योंकि वह सभी उसी श्रृंखला की कड़ियाँ हैं।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
अंतर-धार्मिक सद्भाव: यह आयत विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच सामान्य आधार ढूंढने में मदद करती है। यहूदी, ईसाई और मुसलमान सभी इब्राहीम, मूसा और ईसा जैसे पैगम्बरों को मानते हैं। यह आयत इस साझी विरासत को रेखांकित करती है।
इस्लामोफोबिया का जवाब: जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम एक "नया" या "विदेशी" धर्म है, इस आयत के पास उनके लिए स्पष्ट जवाब है कि इस्लाम तो उसी सार्वभौमिक सत्य की वापसी है जो हमेशा से अस्तित्व में रहा है।
आध्यात्मिक एकता: एक विभाजित दुनिया में, यह आयत सभी इब्राहीमी धर्मों के लिए एकता के सूत्र का काम करती है।
भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया में विभिन्न धर्म रहेंगे, यह आयत मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत बनी रहेगी। यह भविष्य की हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि इस्लाम एक अलगाववादी विश्वास नहीं है, बल्कि ईश्वरीय मार्गदर्शन की उस सार्वभौमिक और निरंतर श्रृंखला का अंतिम और पूर्ण चरण है जो मानवता की शुरुआत से चली आ रही है। यह संदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन को ऐतिहासिक संदर्भ और दिव्य पुष्टि प्रदान करती है। यह इस्लाम को एक अलग और नए धर्म के रूप में नहीं, बल्कि उसी शाश्वत और एकेश्वरवादी धर्म की अंतिम अभिव्यक्ति के रूप में स्थापित करती है जिसे हमेशा से मानवजाति के लिए भेजा जाता रहा है। यह आयत हमें सिखाती है कि सभी पैगम्बरों का सम्मान करो और उस एक सत्य को पहचानो जो उन सभी के माध्यम से प्रकट हुआ है।