(1) पूरी आयत अरबी में:
"وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنَاهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ ۚ وَكَلَّمَ اللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
وَرُسُلًا (Wa Rusulan): और (बहुत से) रसूल (पैग़म्बर)।
قَدْ (Qad): निश्चित रूप से।
قَصَصْنَاهُمْ (Qaṣaṣnāhum): हमने उनका वर्णन किया है।
عَلَيْكَ (Alayka): आपसे।
مِن قَبْلُ (Min Qablu): इससे पहले।
وَرُسُلًا (Wa Rusulan): और (कुछ) रसूल।
لَّمْ (Lam): नहीं।
نَقْصُصْهُمْ (Naqsuṣhum): हमने उनका वर्णन किया है।
عَلَيْكَ (Alayka): आपसे।
وَكَلَّمَ (Wa Kallama): और बातचीत की।
اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह ने।
مُوسَىٰ (Mūsā): मूसा (अलैहिस्सलाम) से।
تَكْلِيمًا (Taklīman): सीधे बात करके।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली आयत (4:163) का सीधा विस्तार है। जहां आयत 163 में कुछ पैगम्बरों के नाम लेकर रिसालत (पैगम्बरी) की निरंतरता साबित की गई थी, वहीं यह आयत यह स्पष्ट करती है कि यह सूची संपूर्ण नहीं है। अल्लाह ने दुनिया में बहुत से पैगम्बर भेजे, जिनमें से कुछ का ही जिक्र कुरआन में है।
आयत का भावार्थ: "और (हमने) बहुत से रसूल भेजे, जिनका वर्णन हमने आपसे पहले कर दिया है और बहुत से रसूल ऐसे हैं जिनका वर्णन हमने आपसे नहीं किया। और अल्लाह ने मूसा से सीधे बात की।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालती है:
1. पैगम्बरों की बहुलता: "व रुसुलन कद कससनाहुम... व रुसुलन लम नक्सुसहुम"
इस आयत से पता चलता है कि अल्लाह के भेजे हुए पैगम्बरों की संख्या बहुत अधिक है।
ज्ञात पैगम्बर: कुरआन और हदीस में लगभग 25 पैगम्बरों के नाम स्पष्ट रूप से आए हैं। ये वो हैं जिनका वर्णन "आपसे पहले" कर दिया गया है।
अज्ञात पैगम्बर: इसके अलावा ऐसे बहुत से पैगम्बर हुए जिनका जिक्र कुरआन में नहीं आया। एक हदीस के अनुसार, पैगम्बरों की कुल संख्या 1,24,000 के लगभग बताई गई है। इसका मतलब यह है कि दुनिया के अलग-अलग इलाकों और अलग-अलग जमानों में अल्लाह ने अपने रसूल भेजे ताकि कोई भी समुदाय बहाना न बना सके कि उनके पास कोई सचेतक (Warner) नहीं आया।
2. अल्लाह का मूसा (अलैहिस्सलाम) से सीधा संवाद: "व कल्लमल्लाहु मूसा तकलीमा"
यहाँ एक विशेष घटना का जिक्र है। अल्लाह ने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) से 'तूर' पहाड़ पर सीधे बात की थी। यह एक अनूठा सम्मान और चमत्कार था।
"तकलीमा" शब्द इस बात पर जोर देता है कि यह कोई संकेत या इलहाम (प्रेरणा) नहीं, बल्कि वास्तविक और सीधी बातचीत थी।
इसका उल्लेख इसलिए किया गया है ताकि यह स्पष्ट हो कि अल्लाह अपने बंदों से बात कर सकता है और वही (Revelation) के विभिन्न तरीके हैं।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
अल्लाह की रहमत का विस्तार: अल्लाह की रहमत और मार्गदर्शन सार्वभौमिक है। उसने किसी एक कौम या इलाके को नहीं छोड़ा, बल्कि हर समुदाय के पास उनकी अपनी भाषा में पैगम्बर भेजे।
विनम्रता का पाठ: हमें केवल उन्हीं पैगम्बरों का अस्तित्व नहीं मानना चाहिए जिनका नाम हम जानते हैं। बहुत से ऐसे पैगम्बर हुए जिनके बारे में हम नहीं जानते, इसलिए हमें इस मामले में विनम्र रहना चाहिए।
अल्लाह की शक्ति में विश्वास: अल्लाह मूसा (अलैहिस्सलाम) से सीधे बात कर सकता है, इसलिए उसकी शक्ति पर पूरा विश्वास रखना चाहिए।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत अहले-किताब (यहूदियों और ईसाइयों) को यह समझाने के लिए थी कि पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का आना कोई नई बात नहीं है, बल्कि अल्लाह की ओर से पैगम्बर भेजने की एक लंबी परंपरा का हिस्सा है।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
धार्मिक सहिष्णुता: यह आयत हमें सिखाती है कि दुनिया के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में जो नेक और पवित्र शख्सियतें हैं (जैसे बुद्ध, कृष्ण, जरथुष्ट्र आदि), हो सकता है उनमें से कुछ अल्लाह के भेजे हुए पैगम्बर रहे हों, जिनका जिक्र कुरआन में नहीं है। इसलिए उनका अपमान करने के बजाय सम्मानपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए।
कोई बहाना नहीं: इस आयत के अनुसार, दुनिया के किसी भी कोने के लोग यह नहीं कह सकते कि "हमारे पास कोई पैगम्बर नहीं आया।" अल्लाह ने हर समुदाय के पास मार्गदर्शक भेजे हैं।
ईमान की व्यापकता: एक मुसलमान का ईमान सभी पैगम्बरों पर है, चाहे हम उनके नाम जानते हों या नहीं। यह ईमान की एक व्यापक और सार्वभौमिक अवधारणा है।
भविष्य (Future) में: जब तक मानवता रहेगी, यह आयत एक स्थायी मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी। यह भविष्य की पीढ़ियों को सिखाती रहेगी कि:
अल्लाह का मार्गदर्शन सार्वभौमिक है।
हमारा ज्ञान सीमित है, इसलिए विनम्र रहो।
दुनिया की विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति सम्मान का भाव रखो।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत हमें अल्लाह की रहमत और मार्गदर्शन की विशालता का एहसास कराती है। यह हमें सिखाती है कि पैगम्बरी का सिलसिला बहुत व्यापक रहा है और कुरआन में केवल कुछ चुनिंदा पैगम्बरों का ही जिक्र किया गया है। साथ ही, यह अल्लाह की शक्ति के एक अनूठे चमत्कार (मूसा से सीधी बातचीत) की याद दिलाकर हमारे ईमान को मजबूत करती है। यह आयत हमें एक व्यापक दृष्टिकोण और धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा देती है।