(1) पूरी आयत अरबी में:
"رُّسُلًا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
رُّسُلًا (Rusulan): (ये) रसूल (पैग़म्बर) थे।
مُّبَشِّرِينَ (Mubashshirīna): खुशखबरी देने वाले।
وَمُنذِرِينَ (Wa Mundhirīna): और डर सुनाने वाले।
لِئَلَّا (Li-allā): ताकि न हो।
يَكُونَ (Yakūna): हो जाए।
لِلنَّاسِ (Linnāsi): लोगों के लिए।
عَلَى (Alā): पर।
اللَّهِ (Allāhi): अल्लाह।
حُجَّةٌ (Hujjatun): कोई दलील / सबूत।
بَعْدَ (Ba’da): के बाद।
الرُّسُلِ (Ar-rusuli): रसूलों के।
وَكَانَ (Wa Kāna): और है (हमेशा से)।
اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह।
عَزِيزًا (Azīzan): सर्वशक्तिमान, प्रभुत्वशाली।
حَكِيمًا (Hakīman): अत्यंत बुद्धिमान, तत्वदर्शी।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली दो आयतों (163-164) में चल रहे विषय का तार्किक और शक्तिशाली निष्कर्ष प्रस्तुत करती है। जहां पहले यह बताया गया था कि अल्लाह ने बहुत से पैगम्बर भेजे, यह आयत बताती है कि उन्हें भेजने का मुख्य उद्देश्य और हिकमत (बुद्धिमत्ता) क्या थी।
आयत का भावार्थ: "(ये सभी) खुशखबरी देने वाले और डर सुनाने वाले रसूल थे, ताकि रसूलों के भेजे जाने के बाद लोगों की अल्लाह पर कोई दलील (हुज्जत) न रह जाए। और अल्लाह सर्वशक्तिमान, तत्वदर्शी है।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत अल्लाह की दया और न्याय दोनों को प्रदर्शित करती है।
पैगम्बरों का दोहरा मिशन: "मुबश्शिरीना व मुन्ज़िरीना"
मुबश्शिर (खुशखबरी देने वाले): पैगम्बर लोगों को अल्लाह की रहमत, उसकी जन्नत और उसकी प्रसन्नता की शुभ सूचना देते थे।
मुन्ज़िर (डर सुनाने वाले): वह लोगों को अल्लाह की नाराज़गी, उसके अज़ाब और गुनाहों के बुरे परिणामों से डराते भी थे।
यह दोहरा संदेश मानव स्वभाव के अनुरूप है - आशा और भय का संतुलन।
मुख्य उद्देश्य: "लिअल्ला यकूना लिन्नासि अलल्लाहि हुज्जतुन ब'दर रुसुल"
यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। अल्लाह ने इतने पैगम्बर इसलिए भेजे ताकि कयामत के दिन कोई भी इंसान अल्लाह के सामने यह बहाना (हुज्जत) न पेश कर सके कि "हमारे पास कोई सचेतक (Warner) नहीं आया," या "हमें सही रास्ता कौन दिखाता?", या "हमें पता ही नहीं था।"
अल्लाह ने हर जमाने और हर इलाके में पैगम्बर भेजकर मार्गदर्शन उपलब्ध करा दिया। अब यह इंसान की जिम्मेदारी है कि वह उस मार्गदर्शन को स्वीकार करे या अस्वीकार। अस्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
अल्लाह की सिफात: "व कानल्लाहु अज़ीज़न हकीमा"
अज़ीज़ (सर्वशक्तिमान): अल्लाह पूरी तरह सक्षम है। उसे पैगम्बर भेजने की जरूरत नहीं थी, लेकिन उसने अपनी दया से भेजे। अगर वह चाहता तो बिना पैगम्बर भेजे ही इंसानों को जवाबदेह ठहरा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
हकीम (अत्यंत बुद्धिमान): पैगम्बरों को भेजने की योजना अल्लाह की गहरी हिकमत (बुद्धिमत्ता) पर आधारित है। यह न्यायसंगत है कि इंसान को सही रास्ता दिखाने के बाद ही उससे जवाब मांगा जाए।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
अल्लाह की दया: पैगम्बरों का भेजा जाना अल्लाह की अपने बंदों के प्रति सबसे बड़ी दया और रहमत है।
इंसान की जिम्मेदारी: अब हम सब पूरी तरह जिम्मेदार हैं। हमारे पास कुरआन और पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पूर्ण मार्गदर्शन मौजूद है। अब गुमराही का कोई बहाना मान्य नहीं है।
हमारा फर्ज: हमारा फर्ज है कि हम इस मार्गदर्शन को स्वीकार करें, उस पर अमल करें और दूसरों तक भी इसकी "बशारत" (खुशखबरी) और "इनज़ार" (चेतावनी) पहुंचाएं।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने के बाद भी ईमान नहीं ला रहे थे। यह उनके सारे बहानों को खारिज कर देती थी।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
बहानेबाजी का अंत: आज भी लोग ईमान न लाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। "धर्म तो बहुत हैं," "सब एक ही है," "मैं अच्छा इंसान हूं, बस काफी है," "मुझे समझ नहीं आता," आदि। यह आयत स्पष्ट कर देती है कि अल्लाह ने सच्चाई को इतना स्पष्ट कर दिया है कि अब कोई बहाना (हुज्जत) स्वीकार्य नहीं है।
दावत का आधार: जो लोग लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाते (दावत देते) हैं, उनके लिए यह आयत एक शक्तिशाली तर्क है। वह लोगों से कह सकते हैं कि अल्लाह ने मार्गदर्शन भेजकर आपके सारे बहाने खत्म कर दिए हैं। अब चुनाव आपको करना है।
व्यक्तिग्र जवाबदेही: यह आयत हर इंसान को उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी का एहसास कराती है। हम यह नहीं कह सकते कि "हमारे माता-पिता ने हमें यह सिखाया," या "हमारा समाज ऐसा है।" सत्य सामने है, अब उसे अपनाना हर व्यक्ति का अपना फैसला है।
भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया कायम है, लोग सत्य से मुंह मोड़ने के लिए बहाने ढूंढते रहेंगे। यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए एक स्थायी चेतावनी और स्पष्टीकरण बनी रहेगी। यह हमेशा यह घोषणा करती रहेगी कि "मार्गदर्शन पूरा हो चुका है, अब जवाबदेही तय है।" यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराएगी और उसे बहानेबाजी के अंत से अवगत कराएगी।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत पैगम्बरों के भेजे जाने की मूल भावना और उद्देश्य को स्पष्ट करती है। यह अल्लाह की दया और न्याय दोनों का प्रमाण है। एक तरफ, उसने हमें हमारी गुमराही का कोई बहाना न छोड़ने का एहसास कराया, और दूसरी तरफ, हमें सही मार्ग दिखाकर अपनी असीम रहमत भी दिखाई। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हम पूरी तरह जिम्मेदार प्राणी हैं और कयामत के दिन हमारे सामने कोई दलील नहीं चलेगी। इसलिए, इस जिम्मेदारी को समझते हुए सत्य को ग्रहण करना और उस पर चलना ही हमारी सफलता है।