Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:166 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"لَّٰكِنِ اللَّهُ يَشْهَدُ بِمَا أَنزَلَ إِلَيْكَ ۖ أَنزَلَهُ بِعِلْمِهِ ۖ وَالْمَلَائِكَةُ يَشْهَدُونَ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):

  • لَّٰكِنِ (Lākini): किन्तु, बल्कि।

  • اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह।

  • يَشْهَدُ (Yashhadu): गवाही देता है।

  • بِمَا (Bimā): उस चीज़ पर।

  • أَنزَلَ (Anzala): उतारा है।

  • إِلَيْكَ (Ilayka): आपकी ओर।

  • أَنزَلَهُ (Anzalahu): उसने उसे उतारा है।

  • بِعِلْمِهِ (Bi'il'mihi): अपने ज्ञान के साथ।

  • وَالْمَلَائِكَةُ (Wal-malā'ikatu): और फ़रिश्ते।

  • يَشْهَدُونَ (Yashhadūna): गवाही देते हैं।

  • وَكَفَىٰ (Wa kafā): और काफी है।

  • بِاللَّهِ (Billāhi): अल्लाह।

  • شَهِيدًا (Shahīdan): गवाह के रूप में।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत पिछली आयतों के तार्किक क्रम को पूरा करती है। पहले यह बताया गया कि अल्लाह ने पैगम्बरों को भेजा ताकि लोगों के पास कोई बहाना न रहे (4:165)। अब, यह आयत इस बात पर मुहर लगाती है कि पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारी गई वह्य (कुरआन) स्वयं अल्लाह की ओर से है और इसकी सच्चाई के लिए सबसे बड़ा गवाह स्वयं अल्लाह है।

आयत का भावार्थ: "किन्तु अल्लाह स्वयं गवाही देता है उस (कुरआन) की सच्चाई की जो उसने आपकी ओर उतारा है। उसने उसे अपने पूर्ण ज्ञान के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं। और गवाह के रूप में अल्लाह ही काफी है।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत कुरआन की दिव्य उत्पत्ति और उसकी सच्चाई पर सबसे शक्तिशाली और निर्णायक प्रमाण प्रस्तुत करती है।

  • "लाकिनिल्लाहु यशहदु बिमा अन्जला इलैक" (किन्तु अल्लाह स्वयं गवाही देता है):

    • यहाँ "लाकिन" (किन्तु) शब्द का प्रयोग इसलिए है क्योंकि यह आयत उन लोगों के इनकार का जवाब है जो पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और कुरआन पर संदेह करते थे।

    • अल्लाह कह रहा है कि तुम लोग चाहे मानो या न मानो, लेकिन स्वयं अल्लाह इस बात की गवाही दे रहा है कि यह कुरआन उसी की ओर से है। किसी गवाही की सच्चाई और विश्वसनीयता उसके गवाह की हैसियत पर निर्भर करती है। और अल्लाह से बड़ा कोई गवाह नहीं हो सकता।

  • "अन्जलहु बि-इल्मिहि" (उसने उसे अपने ज्ञान के साथ उतारा):

    • कुरआन अल्लाह के पूर्ण और सर्वव्यापी ज्ञान का प्रतिफल है। इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य का ज्ञान, ब्रह्मांड के रहस्य, और मानवीय जीवन के लिए पूर्ण मार्गदर्शन शामिल है।

    • यह मनुष्यों की रचना नहीं है, क्योंकि कोई भी मनुष्य इस तरह का सर्वज्ञान नहीं रख सकता।

  • "वल मलाइकतु यशहदून" (और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं):

    • फ़रिश्ते, जो इस वह्य (प्रकाशना) के अवतरण की प्रक्रिया में शामिल थे, वे भी इस बात की गवाही देते हैं कि कुरआन सीधे अल्लाह की ओर से है।

    • जिब्रील (अलैहिस्सलाम) स्वयं इस वह्य को लेकर आते थे, इसलिए पूरी फ़रिश्तों की जमात इसकी गवाह है।

  • "व कफा बिल्लाहि शहीदा" (और गवाह के रूप में अल्लाह ही काफी है):

    • यह आयत का सबसे शक्तिशाली और निर्णायक कथन है। अल्लाह कहता है कि उसकी गवाही ही पर्याप्त है। अगर कोई अल्लाह की गवाही को भी नहीं मानता, तो फिर उसके लिए कोई और गवाही काम नहीं आएगी।

    • यह हर प्रकार के संदेह और इनकार का अंत कर देता है।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. कुरआन की सर्वोच्च सत्यता: कुरआन की सच्चाई पर संदेह करने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि स्वयं अल्लाह इसकी गवाही दे रहा है।

  2. अल्लाह पर पूर्ण विश्वास: एक मुसलमान का अल्लाह पर इतना विश्वास होना चाहिए कि जब अल्लाह किसी बात की गवाही दे दे, तो उसके लिए वह अंतिम सत्य हो जाता है।

  3. गर्व और हठ का परित्याग: जो व्यक्ति अल्लाह की गवाही के बाद भी इनकार करता है, वह गर्व और हठ के अलावा और किसी चीज पर नहीं चल रहा।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चुनौती और उत्तर थी जो पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहते थे कि "आप इस कुरआन को गढ़ लाए हैं।" अल्लाह ने स्पष्ट कर दिया कि वह स्वयं इसकी सच्चाई का गवाह है।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • कुरआन पर होने वाले हमलों का जवाब: आज भी कुरआन की दिव्य उत्पत्ति पर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की अपनी रचना है। इस आयत के पास उनके लिए सीधा जवाब है: "स्वयं अल्लाह गवाह है।"

    • मुसलमानों के ईमान को मजबूती: यह आयत हर मुसलमान के दिल में कुरआन के प्रति अटूट विश्वास और यक़ीन पैदा करती है। जब अल्लाह खुद गवाह बन जाए, तो फिर किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रह जाती।

    • दावत-ए-इस्लाम का आधार: जब लोगों को इस्लाम की दावत दी जाए, तो यह आयत सबसे बड़ा प्रमाण है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है।

  • भविष्य (Future) में: जब तक कुरआन रहेगा, लोग इसकी उत्पत्ति और सत्यता पर सवाल उठाते रहेंगे। यह आयत कयामत तक सभी संदेहों और आपत्तियों का एक स्थायी, शक्तिशाली और निर्णायक उत्तर बनी रहेगी। यह हमेशा यह घोषणा करती रहेगी कि कुरआन की सच्चाई के लिए अल्लाह की गवाही ही सबसे बड़ा और पर्याप्त प्रमाण है।

निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत कुरआन की सच्चाई पर एक ऐसी दिव्य मुहर है जिसे कोई खंडित नहीं कर सकता। यह आयत हमें बताती है कि कुरआन के संदेश की पुष्टि के लिए स्वयं अल्लाह, उसके फ़रिश्ते और उसका पूर्ण ज्ञान गवाही दे रहे हैं। एक मुसलमान के लिए, अल्लाह की यह गवाही ही उसके ईमान के लिए पर्याप्त है। यह आयत हमें कुरआन की शरण में आने, उसे पढ़ने, समझने और उसके मार्गदर्शन पर चलने की प्रेरणा देती है, क्योंकि यह वह किताब है जिसकी सच्चाई की गवाही देने के लिए सृष्टिकर्ता स्वयं आगे आया है।