(1) पूरी आयत अरबी में:
"فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَاعْتَصَمُوا بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
فَأَمَّا (Fa-ammā): तो जो।
الَّذِينَ (Alladhīna): लोग।
آمَنُوا (Āmanū): ईमान लाए।
بِاللَّهِ (Billāhi): अल्लाह पर।
وَاعْتَصَمُوا (Wa’taṣamū): और मजबूती से थाम लिया।
بِهِ (Bihī): उसे (अल्लाह को)।
فَسَيُدْخِلُهُمْ (Fa-sayudkhiluhum): तो वह दाखिल करेगा उन्हें।
فِي (Fī): में।
رَحْمَةٍ (Raḥmatin): रहमत।
مِّنْهُ (Minhu): अपनी ओर से।
وَفَضْلٍ (Wa faḍlin): और फज़ल (अनुग्रह)।
وَيَهْدِيهِمْ (Wa yahdīhim): और मार्गदर्शन करेगा उन्हें।
إِلَيْهِ (Ilayhi): अपनी ओर।
صِرَاطًا (Ṣirāṭan): रास्ता।
مُّسْتَقِيمًا (Mustaqīman): सीधा।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत सूरह अन-निसा के एक लंबे और महत्वपूर्ण खंड (आयत 153 से शुरू) का अंतिम और सुखद निष्कर्ष है। इस खंड में बनी इसराईल के इतिहास, उनकी अवज्ञा, हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बारे में गलत मान्यताओं का खंडन और फिर पूरी मानवजाति के लिए कुरआन के "बुरहान" (प्रमाण) और "नूर" (प्रकाश) होने की घोषणा की गई थी। अब यह आयत उन सभी लोगों के लिए एक सुंदर और आश्वासन भरा वादा पेश करती है जो इस स्पष्ट मार्गदर्शन को स्वीकार करते हैं।
आयत का भावार्थ: "तो जिन लोगों ने अल्लाह पर ईमान लाया और उसी (के धर्म) को मजबूती से थाम लिया, वह उन्हें अपनी रहमत और अपने अनुग्रह में दाखिल करेगा और उन्हें अपनी ओर आने का सीधा मार्ग दिखाएगा।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत सच्चे मोमिन के लिए तीन सबसे बड़े इनामों की घोषणा करती है।
सच्चे मोमिन की पहचान:
"आमनू बिल्लाह" - अल्लाह पर ईमान लाना। यह सिर्फ जुबानी दावा नहीं, बल्कि दिल से उसकी एकता, उसके गुणों, उसके फैसलों और आखिरत पर पूरा विश्वास है।
"व'तसमू बिही" - और उसे मजबूती से थाम लेना। यह ईमान के बाद का दूसरा महत्वपूर्ण कदम है। इसका मतलब है हर परिस्थिति में अल्लाह के दीन, उसकी किताब और उसके रसूल के मार्ग को दृढ़ता से पकड़े रहना। जीवन के उतार-चढ़ाव, मुश्किलों और फितनों में भी अल्लाह के सहारे को न छोड़ना।
सच्चे मोमिन के लिए तीन इनाम:
"फ़स-युद्खिलहुम फी रहमतिम मिन्हु" - "वह उन्हें अपनी रहमत में दाखिल करेगा।"
यह रहमत दुनिया और आखिरत दोनों में है। दुनिया में यह अमन, सुकून, तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा) और अल्लाह की मदद के रूप में है।
आखिरत में इस रहमत का सबसे बड़ा रूप जन्नत है।
"व फज़्लिन" - "और अपने फज़ल (विशेष अनुग्रह) में।"
"फज़ल" "रहमत" से ऊपर की चीज़ है। रहमत तो इंसान के कर्मों का बदला है, लेकिन फज़ल अल्लाह की वह विशेष दया है जो बन्दे के कर्मों से कहीं ज्यादा होती है।
यह वह अनंत इनाम है जिसका कोई हिसाब नहीं, जैसे अल्लाह को देखना, उसकी रज़ामंदी, और जन्नत की वे नेमतें जिनका किसी आँख ने कभी सपना नहीं देखा।
"व यह्दीहिम इलैहि सिरातम मुस्तकीमा" - "और उन्हें अपनी ओर आने का सीधा मार्ग दिखाएगा।"
यह सबसे बड़ा इनाम है। दुनिया में ही अल्लाह उनके दिल को हिदायत से भर देता है और उनके कदमों को सीधे रास्ते पर मजबूत करता है, ताकि वह गुमराही और पापों से बचे रहें।
आखिरत में यही सीधा रास्ता उन्हें सीधे जन्नत की ओर ले जाएगा।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
ईमान और अक़ीदे की मजबूती: सिर्फ ईमान लाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे हर हाल में मजबूती से थामे रहना भी जरूरी है।
अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल): "इ'तिसाम बिल्लाह" (अल्लाह को थाम लेना) ही असली तवक्कुल है। यह सिखाता है कि हर मुसीबत और हर खुशी में अल्लाह ही हमारा सहारा है।
अल्लाह की दया पर विश्वास: अल्लाह की रहमत और फज़ल उसके बन्दों पर इतनी विशाल है कि हम उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इसलिए हमेशा उसकी रहमत से आशावान रहना चाहिए।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत प्रारंभिक मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ी आशा और ढाढस थी, जो मक्का और मदीना में कठिनाइयों और यातनाओं का सामना कर रहे थे। यह उन्हें बताती थी कि अल्लाह पर ईमान और उसके दीन को थामे रहने का इनाम बहुत बड़ा है।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
आध्यात्मिक सुरक्षा: आज का मुसलमान तरह-तरह के फितनों, गलत विचारधाराओं और पापों के घेरे में है। इस आयत का संदेश है कि अगर हमने अल्लाह और उसके दीन को "मजबूती से थाम लिया" (इ'तिसाम), तो अल्लाह हमें इन सबसे बचाकर "सीधे रास्ते" पर कायम रखेगा।
मन की शांति: आज के तनाव भरे जीवन में, असली शांति और सुकून अल्लाह की "रहमत" में ही है, जो उसे उसी वक्त मिल जाता है जब वह अल्लाह से मजबूती से जुड़ जाता है।
प्रेरणा और आशा: जो लोग दीन पर अमल करते हैं लेकिन दुनियावी मुश्किलों या निराशा का शिकार हैं, उनके लिए यह आयत बताती है कि तुम्हारा इनाम सिर्फ जन्नत ही नहीं, बल्कि अल्लाह की "रहमत" और "फज़ल" का अनंत भंडार है।
भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया रहेगी, इंसान के सामने ईमान और गुमराही का चुनाव रहेगा। यह आयत कयामत तक हर उस इंसान के लिए एक स्थायी आशा और प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी जो अल्लाह और उसके दीन को थामना चाहता है। यह हमेशा यह वादा करती रहेगी कि अल्लाह पर ईमान और उसके दीन को दृढ़ता से थामने वालों के लिए अनंत दया, अनुग्रह और सीधे मार्ग का वादा है।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत सच्चे ईमान का सुंदर चित्रण और उसके लिए अल्लाह के अनंत इनाम का वर्णन करती है। यह हमें सिखाती है कि सफलता का रहस्य "ईमान बिल्लाह" और "इ'तिसाम बिही" में छुपा है। यह आयत हमारे दिलों में अल्लाह की रहमत और फज़ल पर अटूट विश्वास पैदा करती है और हमें हर हाल में अल्लाह और उसके दीन को मजबूती से थामे रहने की प्रेरणा देती है। यह इस पूरे खंड का एक सुखद और आशावादी अंत है, जो हर मोमिन के लिए जन्नत की शुभ सूचना के साथ समाप्त होता है।