1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
فَمِنْهُم مَّنْ آمَنَ بِهِ وَمِنْهُم مَّن صَدَّ عَنْهُ ۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"फिर उन (इब्राहीम के वंशजों) में से कुछ ऐसे थे जो उस (पैगंबर मुहम्मद) पर ईमान लाए और उनमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने (लोगों को) उससे रोक दिया। और जहन्नम (की आग) ही (रोकने वालों के लिए) काफी है, जो (भड़कती हुई) आग है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
मानव की स्वतंत्र पसंद: यह आयत मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा और चुनाव की शक्ति को दर्शाती है। एक ही पृष्ठभूमि और विरासत के लोग अलग-अलग रास्ते चुन सकते हैं - कुछ सत्य को स्वीकार करते हैं और कुछ उसका इनकार करते हैं।
ईमान और इनकार का फर्क: आयत स्पष्ट रूप से दो समूहों में अंतर करती है:
वे जो पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) पर ईमान लाए।
वे जिन्होंने न सिर्फ खुद इनकार किया बल्कि दूसरों को भी ईमान लाने से रोका।
गुमराह करने वालों के लिए गंभीर चेतावनी: जो लोग दूसरों को सत्य के मार्ग से रोकते हैं, उनके लिए जहन्नम की भड़कती हुई आग की सजा बताई गई है। यह एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है।
सत्य को स्वीकार करने वालों के लिए प्रोत्साहन: दूसरी ओर, जिन्होंने सत्य को स्वीकार किया, उनके लिए यह आयत एक प्रोत्साहन का काम करती है कि उन्होंने सही चुनाव किया है।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
यहूदियों के बीच अंतर: यह आयत मदीना के यहूदियों के बारे में उतरी थी। उनमें से कुछ जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (र.अ.) ने पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) पर ईमान ले आए, जबकि अधिकांश ने न सिर्फ इनकार किया बल्कि दूसरों को भी ईमान लाने से रोका।
ऐतिहासिक संदर्भ: यह आयत एक ऐतिहासिक वास्तविकता को दर्शाती है कि कैसे एक ही समुदाय के लोगों ने सत्य के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया दी।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
धार्मिक स्वतंत्रता और जिम्मेदारी: आज के युग में, यह आयत हमें याद दिलाती है कि हर व्यक्ति के पास सत्य को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता है। लेकिन साथ ही, दूसरों को सत्य से रोकने की कोशिश करने की जिम्मेदारी भी है।
गुमराह करने वालों की पहचान: यह आयत उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो लोगों को इस्लाम की ओर आने से रोकते हैं, इस्लाम के बारे में गलत जानकारी फैलाते हैं, या लोगों को इस्लाम से दूर करने की कोशिश करते हैं।
सही चुनाव का महत्व: यह आयत हर इंसान से अपील करती है कि वह सत्य के प्रति अपनी प्रतिक्रिया का सावधानीपूर्वक चुनाव करे, क्योंकि इसके अनंत परिणाम हैं।
आत्म-मूल्यांकन: यह आयत हमें आत्म-मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती है: क्या हम सत्य को स्वीकार करने वालों में हैं या फिर उससे मुंह मोड़ने वालों में?
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत सिद्धांत: मानव की स्वतंत्र इच्छा और चुनाव की शक्ति का सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यही शाश्वत सबक सिखाती रहेगी।
सत्य और असत्य का संघर्ष: भविष्य में भी सत्य और असत्य का संघर्ष जारी रहेगा। यह आयत लोगों को सत्य का साथ देने और असत्य से दूर रहने का मार्गदर्शन देती रहेगी।
जिम्मेदार नागरिकता: भविष्य के समाज में, यह आयत लोगों को एक जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा देगी जो न सिर्फ खुद सत्य को स्वीकार करे बल्कि दूसरों को भी सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करे।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:55 मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा और चुनाव की शक्ति के महत्व को रेखांकित करती है। यह अतीत में एक ऐतिहासिक वास्तविकता का वर्णन थी, वर्तमान में हमारे व्यक्तिगत चुनावों के लिए एक मार्गदर्शक है और भविष्य के लिए एक शाश्वत सिद्धांत है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें सत्य का साथ देना चाहिए और दूसरों को सत्य से रोकने वालों के भयानक परिणामों से सावधान रहना चाहिए।