Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:56 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا سَوْفَ نُصْلِيهِمْ نَارًا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُمْ بَدَّلْنَاهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا لِيَذُوقُوا الْعَذَابَ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"निश्चित रूप से जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ इन्कार किया, हम उन्हें अग्नि में डालेंगे। जब भी उनकी खालें जल जाएँगी, हम उनकी खालें बदल देंगे दूसरी खालों से, ताकि वे यातना (का स्वाद) चखते रहें। निश्चित ही अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. कुफ्र का गंभीर परिणाम: यह आयत स्पष्ट करती है कि जो लोग अल्लाह की आयतों (निशानियों) के साथ इन्कार (कुफ्र) करते हैं, उनके लिए जहन्नम की आग की सजा है। यह अल्लाह के अधिकार और न्याय को दर्शाता है।

  2. निरंतर यातना की व्यवस्था: आयत में जहन्नम की यातना की एक विशेष विधि का वर्णन है - जब जलने वाले की खाल जल जाती है, तो उसे नई खाल से बदल दिया जाता है ताकि वह यातना का स्वाद लगातार चखता रहे। यह दर्शाता है कि आखिरत की यातना भौतिक दुनिया की यातना से कहीं अधिक तीव्र और निरंतर है।

  3. अल्लाह की शक्ति और हिकमत: आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि अल्लाह "अज़ीज़" (सर्वशक्तिमान) और "हकीम" (तत्वदर्शी) है। उसकी शक्ति के आगे कोई नहीं टिक सकता और उसका हर फैसला पूरी हिकमत से भरपूर है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • मक्का के मुशरिकों के लिए चेतावनी: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के उन मूर्तिपूजकों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की दावत को ठुकरा रहे थे और कुरआन की आयतों का इन्कार कर रहे थे।

  • ईमान वालों के लिए प्रोत्साहन: प्रारंभिक मुसलमानों के लिए, जो यातनाएँ सह रहे थे, यह आयत एक प्रोत्साहन थी कि अंत में न्याय अवश्य होगा और अत्याचारियों को उनके कर्मों का फल मिलेगा।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • कुफ्र के आधुनिक रूपों के लिए चेतावनी: आज के युग में, यह आयत उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है जो कुरआन की आयतों, पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के संदेश, या इस्लाम के स्पष्ट नियमों का इन्कार करते हैं। इसमें नास्तिक, धर्म का मजाक उड़ाने वाले, और इस्लाम के मूल सिद्धांतों को न मानने वाले शामिल हैं।

  • आखिरत पर विश्वास को मजबूत करना: यह आयत आखिरत (परलोक) और उसकी यातना पर विश्वास को मजबूत करती है। यह हमें याद दिलाती है कि यह दुनिया अंतिम पड़ाव नहीं है और हर कर्म का हिसाब होगा।

  • गंभीर चेतावनी के रूप में: यह आयत एक गंभीर चेतावनी के रूप में काम करती है कि इंसान को अपने कर्मों के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए और सत्य को स्वीकार करने में देरी नहीं करनी चाहिए।

  • अल्लाह की शक्ति का एहसास: यह आयत अल्लाह की असीम शक्ति और उसके न्याय का एहसास कराती है, जो मनुष्य को गुनाहों से बचने और तौबा करने के लिए प्रेरित कर सकती है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया में कुफ्र और इन्कार रहेगा, यह आयत एक शाश्वत चेतावनी बनी रहेगी कि अल्लाह के न्याय से कोई नहीं बच सकता।

  • न्याय का वादा: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत इस बात का वादा है कि अंत में हर अत्याचारी और इन्कार करने वाले को न्याय का सामना करना होगा।

  • आशा और डर का संतुलन: यह आयत भविष्य के मुसलमानों के लिए आशा (अल्लाह की रहमत) और डर (अल्लाह की सजा) का संतुलन बनाए रखेगी, जो एक स्वस्थ आध्यात्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:56 आखिरत की यातना की गंभीरता और अल्लाह के न्याय की अटलता को दर्शाती है। यह अतीत में एक स्पष्ट चेतावनी थी, वर्तमान में कुफ्र के विभिन्न रूपों के खिलाफ एक चेतावनी है और भविष्य के लिए एक शाश्वत न्याय का वादा है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अल्लाह की आयतों के साथ इन्कार करने से बचना चाहिए और सत्य को स्वीकार करके अपने आप को जहन्नम की यातना से बचाना चाहिए।