﴿وَلَئِنْ أَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِّنَ اللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمْ تَكُن بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ مَوَدَّةٌ يَا لَيْتَنِي كُنتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
وَلَئِنْ: और यदि
أَصَابَكُمْ: प्राप्त हो जाए तुम्हें
فَضْلٌ مِّنَ اللَّهِ: अल्लाह की ओर से कोई अनुग्रह (लाभ, विजय, गनीमत)
لَيَقُولَنَّ: तो अवश्य कहने लगेगा
كَأَن: मानो कि
لَّمْ تَكُن: नहीं थी
بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ: तुम्हारे और उसके बीच
مَوَدَّةٌ: कोई दोस्ती
يَا لَيْتَنِي: काश! मैं
كُنتُ مَعَهُمْ: होता उनके साथ
فَأَفُوزَ: तो मैं सफल हो जाता
فَوْزًا عَظِيمًا: बहुत बड़ी सफलता
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"और यदि तुम्हें अल्लाह की ओर से कोई अनुग्रह (विजय या लाभ) प्राप्त हो जाए, तो वह (मुनाफिक) अवश्य कहने लगेगा, मानो तुम्हारे और उसके बीच कोई दोस्ती थी ही नहीं, 'काश! मैं भी उनके साथ होता, तो (भी) बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता।'"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत पिछली आयत में वर्णित मुनाफिक के चरित्र का दूसरा पहलू दिखाती है। यह उसकी अवसरवादी और स्वार्थी मानसिकता को उजागर करती है:
अवसरवादी स्वभाव: यह मुनाफिक मुसीबत के समय तो अपने आपको अलग कर लेता है और उसे देखकर खुश होता है, लेकिन जैसे ही सफलता और लाभ मिलता है, वह तुरंत अपना रवैया बदल लेता है।
झूठी खेद प्रकट करना: सफलता मिलने पर वह झूठा अफसोस जताता है, "काश मैं भी उनके साथ होता।" यह अफसोस सच्चा नहीं होता, बल्कि लालच और फायदे से प्रेरित होता है।
संबंधों का इनकार: वह इतना स्वार्थी होता है कि सफलता के समय वह अपने और मोमिनीन के बीच की सारी पुरानी दोस्ती और रिश्ते को ही नकार देता है, मानो उनमें कोई लगाव था ही नहीं। उसका एकमात्र लक्ष्य लाभ उठाना होता है।
सफलता का लोभ: उसकी नज़र में "फौज़ुन अज़ीम" (महान सफलता) दुनिया की गनीमत (लूट) और विजय है, न कि अल्लाह की रज़ा और आखिरत का सुख। उसकी प्राथमिकताएँ पूरी तरह से भौतिकवादी हैं।
मुख्य शिक्षा: सच्चा मोमिन हर हाल में अल्लाह के मार्ग पर डटा रहता है - चाहे मुसीबत आए या सफलता मिले। उसका उद्देश्य अल्लाह की रज़ा होता है, न कि दुनिया का लाभ। अवसरवादी और स्वार्थी लोगों से सावधान रहना चाहिए जो मुसीबत के समय साथ छोड़ देते हैं और सफलता के समय हक जताते हैं।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उन मुनाफिकों के व्यवहार का वर्णन कर रही थी जो जिहाद से पीछे रह जाते थे। अगर मुसलमानों को युद्ध में हानि होती, तो वे खुश होते। लेकिन अगर मुसलमान विजयी होते और गनीमत (युद्ध की लूट) मिलती, तो वे मदीना में आकर झूठा अफसोस जताते और लूट में हिस्सा चाहते थे, मानो उन्होंने लड़ाई में कोई भूमिका न निभाई हो।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
फेयर-वेदर फ्रेंड्स (मौसमी दोस्त): आज के समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुसीबत के समय तो साथ छोड़ देते हैं, लेकिन सफलता मिलने पर तुरंत हक जताने आ जाते हैं। यह आयत हमें ऐसे अवसरवादी लोगों की पहचान करना सिखाती है।
धार्मिक और सामाजिक कार्य: जब कोई इस्लामी संस्था या समाज सेवा का प्रोजेक्ट सफल होता है, तो कुछ लोग जिन्होंने उसमें कोई योगदान नहीं दिया, वे भी श्रेय लेने और फायदा उठाने पहुँच जाते हैं। यह आयत ऐसे लोगों के चरित्र को बेनकाब करती है।
कार्यस्थल पर व्यवहार: ऑफिस में कोई कठिन प्रोजेक्ट हो तो कुछ सहयोगी उससे दूर भागते हैं, लेकिन जब उस प्रोजेक्ट की सफलता पर तारीफ़ या बोनस मिलता है, तो वेी कहने लगते हैं, "काश मैं भी उस टीम में होता।" यह भी इसी मानसिकता का प्रतीक है।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी चेतावनी और मार्गदर्शन है:
वफादारी का मापदंड: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को सिखाएगी कि असली वफादारी का पता मुसीबत के समय चलता है, सफलता के समय नहीं। सच्चे साथी वे हैं जो संकट में साथ देते हैं।
आत्म-मूल्यांकन: हर मुसलमान इस आयत से खुद को जाँच सकता है। कहीं वह भी तो ऐसा नहीं करता? कहीं वह भी मुसीबत के समय पीछे हटता है और सफलता के समय आगे आकर हक जताता है?
समाज निर्माण: एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि उसके सदस्य अवसरवादी न हों, बल्कि जिम्मेदार और निष्ठावान हों। यह आयत ऐसे ही चरित्र के निर्माण पर जोर देती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें सिखाती है कि एक मोमिन का जीवन सिद्धांतों और निष्ठा पर आधारित होना चाहिए, अवसरवादिता पर नहीं। हमें उन लोगों से सबक लेना चाहिए जो मुसीबत के समय तो साथ छोड़ देते हैं और सफलता के समय हक जताने आते हैं। असली सफलता ("फौज़ुन अज़ीम") अल्लाह की रज़ा में है, न कि दुनिया के थोड़े से लाभ में। एक सच्चा मोमिन हर हाल में अल्लाह के मार्ग पर डटा रहता है।