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कुरआन की आयत 5:9 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 9)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • وَعَدَ: वादा किया है।

  • اللَّهُ: अल्लाह ने।

  • الَّذِينَ: उन लोगों से।

  • آمَنُوا: जिन्होंने ईमान लाया।

  • وَعَمِلُوا: और उन्होंने अमल किया।

  • الصَّالِحَات: नेक (सद्कर्मों) का।

  • لَهُم: उनके लिए है।

  • مَّغْفِرَةٌ: मग़फ़िरत (क्षमा)।

  • وَأَجْرٌ: और बदला (प्रतिफल)।

  • عَظِيمٌ: बहुत बड़ा (अज़ीम)।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"अल्लाह ने उन लोगों से वादा किया है जिन्होंने ईमान लाया और नेक अमल किए कि उनके लिए (उनके पापों की) क्षमा और एक महान प्रतिफल है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत बेहद संक्षिप्त है, लेकिन इसका अर्थ बहुत ही गहरा और व्यापक है। यह पिछली आयतों में दिए गए कठिन आदेशों (जैसे न्याय और शुद्धता) के बाद एक शक्तिशाली प्रोत्साहन और आश्वासन के रूप में आती है।

1. वादा करने वाला: "वअदल्लाह" (अल्लाह ने वादा किया है)

  • यह आयत अल्लाह के वादे से शुरू होती है। अल्लाह का वादा पूर्णतः सत्य और अटल है। इसमें किसी प्रकार का कोई भ्रम या संदेह नहीं है। यह मनुष्यों के अस्थिर वादों के विपरीत है।

2. वादे के पात्र: "अल्लज़ीना आमनू व अमिलुस्सालिहात" (जिन्होंने ईमान लाया और नेक अमल किए)

  • यह पूरे कुरआन में बार-बार आने वाला एक मूलभूत सूत्र है। यह दर्शाता है कि इस्लाम में केवल दावा ही पर्याप्त नहीं है। सच्चा और पूर्ण ईमान दो चीजों का मेल है:

    • आंतरिक विश्वास (ईमान): दिल से अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों, उसके पैगंबरों और आखिरत के दिन पर विश्वास।

    • बाहरी कर्म (अमल-ए-सालेह): उस विश्वास को व्यावहारिक जीवन में ईमानदारी, न्याय, दया, प्रार्थना, जकात आदि के माध्यम से लागू करना।

  • विश्वास और कर्म एक-दूसरे के पूरक हैं; एक के बिना दूसरा अधूरा है।

3. वादे की सामग्री: "मग़फ़िरतुन व अज्रुन अज़ीम" (क्षमा और एक महान प्रतिफल)

  • यह वादा दो भागों में है:

    • मग़फ़िरत (क्षमा): यह अतीत के लिए है। कोई भी इंसान पापों से मुक्त नहीं है। अल्लाह उन लोगों के सभी पापों (छोटे-बड़े) को क्षमा कर देगा जो सच्चे ईमान और नेक अमल वाले हैं। यह एक विशाल राहत और मन की शांति का स्रोत है।

    • अज्रुन अज़ीम (महान प्रतिफल): यह भविष्य के लिए है। केवल पापों की क्षमा ही नहीं, बल्कि अल्लाह ऐसे लोगों को जन्नत जैसी अनंत कृपा और ऐश्वर्य प्रदान करेगा। "अज़ीम" (महान) शब्द इस प्रतिफल की विशालता, शान और अनंतता को दर्शाता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. आशा और प्रोत्साहन: यह आयत हर मुसलमान के दिल में आशा की ज्योति जलाती है। यह दर्शाती है कि अल्लाह की दया उसके गुस्से पर भारी है और वह अपने बंदों को पुरस्कृत करना चाहता है।

  2. ईमान और अमल का संतुलन: यह आयत एक संतुलित जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है। न तो केवल विश्वास पर्याप्त है और न ही केवल कर्म। दोनों का सही मेल ही सफलता की कुंजी है।

  3. प्रयास का मूल्य: अल्लाह का महान वादा यह दर्शाता है कि ईमान और नेकी का मार्ग चुनने वाले के प्रयासों का मूल्य अत्यधिक है। दुनिया की किसी भी चीज़ की तुलना आखिरत के इस प्रतिफल से नहीं की जा सकती।

  4. पापियों के लिए आशा: यह आयत उन लोगों के लिए भी आशा का संदेश है जिनसे पाप हो गए हैं। यदि वह सच्चे मन से तौबा (पश्चाताप) करके ईमान और नेक अमल की ओर लौटते हैं, तो अल्लाह की क्षमा और पुरस्कार की योजना में वह भी शामिल हैं।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • प्रारंभिक मुसलमानों के लिए प्रेरणा: इस्लाम के आरंभिक दिनों में, मुसलमानों पर अत्याचार और यातनाएँ हो रही थीं। इस आयत ने उन्हें यह आश्वासन देकर हिम्मत दी कि उनके संघर्ष और विश्वास का अंतिम परिणाम अत्यधिक शानदार होगा। यह उनकी आस्था को मजबूत करती थी।

  • कर्म और विश्वास के बीच संतुलन: इसने यहूदियों और ईसाइयों के उन समूहों के जवाब में एक स्पष्ट स्थिति अपनाई जो या तो केवल विश्वास (ईसाईयत का एक हिस्सा) या केवल कर्म (कुछ यहूदी समूह) पर जोर देते थे।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • नैतिक अवसाद और निराशा के युग में: आज का मनुष्य तनाव, अवसाद और अर्थहीनता से ग्रस्त है। भौतिकवाद ने लोगों को यह एहसास दिला दिया है कि जीवन का अंत मृत्यु के साथ ही हो जाता है। यह आयत जीवन को एक उद्देश्य और एक शानदार अंत देती है, जो गहरी मनोवैज्ञानिक शांति प्रदान कर सकती है।

  • कर्मकांडवाद बनाम आस्थावाद: आज कई मुसलमान दो चरम सीमाओं के बीच फंसे हुए हैं: एक तरफ बिना आस्था के केवल रीति-रिवाजों (रूटीन) का पालन और दूसरी तरफ बिना कर्म के केवल "दिल का साफ होना"। यह आयत दोनों के बीच सही संतुलन स्थापित करती है।

  • आशा का संदेश: जो लोग अपने अतीत के पापों से त्रस्त और हताश हैं, उनके लिए यह आयत एक नई शुरुआत का संदेश है। यह बताती है कि अल्लाह की क्षमा और पुरस्कार प्राप्त करने का द्वार खुला है, बशर्ते व्यक्ति ईमान और नेकी के मार्ग पर चलने का ईमानदारी से प्रयास करे।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • तकनीकी युग में आध्यात्मिक प्यास: भविष्य की दुनिया Artificial Intelligence (AI), Virtual Reality और भौतिकवाद में और डूबी हुई होगी। ऐसे में, मनुष्य की आध्यात्मिक प्यास और बढ़ेगी। यह आयत एक सार्वभौमिक और शाश्वत सत्य की ओर इशारा करेगी: सच्ची सफलता और शांति ईश्वर पर विश्वास और नैतिक जीवन में निहित है।

  • एक स्थायी प्रेरणा: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, मनुष्य की मौलिक आकांक्षाएं - क्षमा पाने की, मान्यता पाने की, और एक शानदार भविष्य पाने की - वही रहेंगी। यह आयत इन आकांक्षाओं की पूर्ति का एक स्पष्ट और दिव्य मार्ग प्रस्तुत करती रहेगी।

  • मानवीय मूल्यों का संरक्षण: जैसे-जैसे नैतिकता के पारंपरिक ढाँचे टूटते जाएँगे, यह आयत "अमल-ए-सालेह" (नेक अमल) के सिद्धांत को एक स्थायी नैतिक कम्पास के रूप में स्थापित करेगी, जो भविष्य के मुसलमानों को अच्छाई और बुराई के बीच अंतर करना सिखाती रहेगी।

निष्कर्ष: सूरह अल-माइदा की यह आयत एक शक्तिशाली आश्वासन है। यह इस्लाम के दर्शन को सारांशित करती है: अल्लाह पर विश्वास और नेक कर्म → अल्लाह की क्षमा और अनंत पुरस्कार। यह सिद्धांत हर युग में मनुष्य के लिए आशा, मार्गदर्शन और सच्ची सफलता का स्रोत बना रहेगा।